29 अप्रैल को क्षुद्रग्रह टकराने जैसा कुछ नहीं होगा।
आजकल कुछ ऐसी अफवाहें व आशंकायें व्यक्त की जा रही हैं कि 29 अप्रैल
2020 को पृथ्वी से एक क्षुद्रग्रह टकराएगा जिससे पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जाएगा। शौकिया खगोलविद व विश्व भर की वेधशालाओं में अंतरिक्ष वैज्ञानिक हमेशा अंतरिक्ष का अवलोकन करते रहते हैं। जिससे वह सौरमंडल में गति कर रहे असंख्य क्षुद्रग्रहों, पुच्छल तारों व अन्य आकाशिय हलचल पर निरन्तर नजर रखते हैं। मंगल ग्रह और बृहस्पति ग्रह की ग्रहीय कक्षाओं के बीच एक विशाल क्षुद्रग्रह घेरा (ऐस्टरौएड बेल्ट) हमारे सोलर सिस्टम का एक ऐसा क्षेत्र है जिसमे हज़ारों-लाखों क्षुद्रग्रह (ऐस्टरौएड) सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। इस पट्टी में से कुछ बड़े क्षुद्रग्रह कभी कभी बृहस्पति ग्रह की गुरुत्व शक्ति से मार्ग भ्रमित हो जाते हैं जिससे उनका निर्धारित मार्ग प्रभावित होता है। ऐसा ही एक क्षुद्रग्रह है जिसका नाम नाम जिसका नाम नाम (52768) 1998 ओआर2 है कि पृथ्वी से टकराने की संभावना कई वर्षों से लगाई जा रही थी परंतु वैज्ञानिक गणनाओं के अनुसार वह पृथ्वी से 63 लाख किलोमीटर दूरी से गुजरेगा। यह दूरी बहुत लंबी है। ऐसे में इस ग्रह की पृथ्वी से टकराने की कोई संभावना नहीं है। इस शुद्र ग्रह (52768) 1998 ओआर2 की खोज 1998 में हुई थी यह सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में 1344 दिन लगाता है। यह बहुत विशाल है। इसका आकार 1.8 किलोमीटर से 4.1 किलोमीटर है। अंतरिक्ष किसी महानगरीय सड़क जैसा नही होता है कि जिसमे वाहन पास-पास चलते हैं ओर आपस मे भिड़ जाते हैं। आकाशिय पिंडों के बीच लाखों- करोड़ों किलोमीटर की दूरियां होती हैं। मनुष्य सभ्यता के होशहवास में इतने विशाल क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने का कोई रिकॉर्ड नहीं है लेकिन पृथ्वी पर बहुत सी इस तरह की झीलें हैं जो क्रेटर झीलें कहलाती है। अनुमान है कि यह क्षुद्रग्रहों की टक्कर से ही बनी हैं। चंद्रमा की सतह पर भी बहुत से क्रेटर देखने को मिलते हैं जो निश्चित ही क्षुद्रग्रहों के टकराने से बने हैं यदि कोई उल्का (क्षुद्रग्रह के मुकाबले बहुत छोटा) पृथ्वी के वायुमंडल प्रवेश करता भी है तो वह वायुमंडल के साथ घर्षण बल के कारण जलने लगता है और उसका आकार पृथ्वी की सतह पर टकराने तक बहुत छोटा रह जाता है। इन्हें उल्का पिंड कहते हैं। यदि कोई क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराता है तो टक्कर के कारण बहुत मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होगी जिससे कि विशाल भू-कंपन उत्पन्न होगा। परंतु इस क्षुद्रग्रह (52768) 1998 ओआर2 के मामले में ऐसी कोई डरने घबराने वाली बात नहीं है क्योंकि यह पृथ्वी की बहुत दूरी से गुजरेगा। इसलिए 29 अप्रैल की रात चैन से सोना है। अभी फिलहाल पृथ्वी पर करोना वायरस रूपी संकट का हमें डटकर मुकाबला करना है बस उसी के निपटान में अपना योगदान दीजिये।
2020 को पृथ्वी से एक क्षुद्रग्रह टकराएगा जिससे पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जाएगा। शौकिया खगोलविद व विश्व भर की वेधशालाओं में अंतरिक्ष वैज्ञानिक हमेशा अंतरिक्ष का अवलोकन करते रहते हैं। जिससे वह सौरमंडल में गति कर रहे असंख्य क्षुद्रग्रहों, पुच्छल तारों व अन्य आकाशिय हलचल पर निरन्तर नजर रखते हैं। मंगल ग्रह और बृहस्पति ग्रह की ग्रहीय कक्षाओं के बीच एक विशाल क्षुद्रग्रह घेरा (ऐस्टरौएड बेल्ट) हमारे सोलर सिस्टम का एक ऐसा क्षेत्र है जिसमे हज़ारों-लाखों क्षुद्रग्रह (ऐस्टरौएड) सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। इस पट्टी में से कुछ बड़े क्षुद्रग्रह कभी कभी बृहस्पति ग्रह की गुरुत्व शक्ति से मार्ग भ्रमित हो जाते हैं जिससे उनका निर्धारित मार्ग प्रभावित होता है। ऐसा ही एक क्षुद्रग्रह है जिसका नाम नाम जिसका नाम नाम (52768) 1998 ओआर2 है कि पृथ्वी से टकराने की संभावना कई वर्षों से लगाई जा रही थी परंतु वैज्ञानिक गणनाओं के अनुसार वह पृथ्वी से 63 लाख किलोमीटर दूरी से गुजरेगा। यह दूरी बहुत लंबी है। ऐसे में इस ग्रह की पृथ्वी से टकराने की कोई संभावना नहीं है। इस शुद्र ग्रह (52768) 1998 ओआर2 की खोज 1998 में हुई थी यह सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में 1344 दिन लगाता है। यह बहुत विशाल है। इसका आकार 1.8 किलोमीटर से 4.1 किलोमीटर है। अंतरिक्ष किसी महानगरीय सड़क जैसा नही होता है कि जिसमे वाहन पास-पास चलते हैं ओर आपस मे भिड़ जाते हैं। आकाशिय पिंडों के बीच लाखों- करोड़ों किलोमीटर की दूरियां होती हैं। मनुष्य सभ्यता के होशहवास में इतने विशाल क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने का कोई रिकॉर्ड नहीं है लेकिन पृथ्वी पर बहुत सी इस तरह की झीलें हैं जो क्रेटर झीलें कहलाती है। अनुमान है कि यह क्षुद्रग्रहों की टक्कर से ही बनी हैं। चंद्रमा की सतह पर भी बहुत से क्रेटर देखने को मिलते हैं जो निश्चित ही क्षुद्रग्रहों के टकराने से बने हैं यदि कोई उल्का (क्षुद्रग्रह के मुकाबले बहुत छोटा) पृथ्वी के वायुमंडल प्रवेश करता भी है तो वह वायुमंडल के साथ घर्षण बल के कारण जलने लगता है और उसका आकार पृथ्वी की सतह पर टकराने तक बहुत छोटा रह जाता है। इन्हें उल्का पिंड कहते हैं। यदि कोई क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराता है तो टक्कर के कारण बहुत मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होगी जिससे कि विशाल भू-कंपन उत्पन्न होगा। परंतु इस क्षुद्रग्रह (52768) 1998 ओआर2 के मामले में ऐसी कोई डरने घबराने वाली बात नहीं है क्योंकि यह पृथ्वी की बहुत दूरी से गुजरेगा। इसलिए 29 अप्रैल की रात चैन से सोना है। अभी फिलहाल पृथ्वी पर करोना वायरस रूपी संकट का हमें डटकर मुकाबला करना है बस उसी के निपटान में अपना योगदान दीजिये।
1 टिप्पणी:
हम तो नाहक ही डर डर के सूखे जा रहे थे।
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