शुक्रवार, 8 मार्च 2013

क्या है स्वाइन फ्लू? What is Swine Flu?

क्या है स्वाइन फ्लू? What is Swine Flu?स्वाइन फ्लू एक घातक वायरस जनित रोग है, जो सूअरों से फैला है। सबसे पहले इस बीमारी के लक्षण मैक्सिको के वेराक्रूज इलाके के एक पिग फार्म के आसपास रह रहे लोगों में पाए गए थे। स्वाइन फ्लू दरअसल सुअरों के बुखार को कहते हैं जो कि उनकी सांस से जुड़ी बीमारी है। ये जुकाम से जुड़े एक वायरस से पैदा होती है। ये वायरस मोटे तौर पर चार तरह के होते हैं। H1N1, H1N2, H3N2 और H3N1। इनमें H1N1 सबसे खतरनाक है और दुनियाभर में यही वायरस सबको अपनी चपेट में ले रहा है।
इंसानों में फैलने की संभावनाए
यूं तो आमतौर पर इसके वायरस इंसानों में नहीं फैलते लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ये बीमारी इंसानों से इंसानों के बीच भी अब फैलने लगी है। ये वायरस उन लोगों में फैल सकता है, जो सुअरों के सीधे संपर्क में रहते हैं।
स्वाइन फ्लू के लक्षण क्या हैं?
इसके लक्षण आम मानवीय फ़्लू से मिलते जुलते ही हैं। बुखार, सिर दर्द, सुस्ती, भूख न लगना और खांसी। कुछ लोगों को इससे उल्टी और दस्त भी हो सकते हैं। सबसे पहले जरूरी है कि स्वाइन फ्लू के लक्षण और इससे बचाव के तरीकों को जानने की। स्वाइन फ्लू के लक्षण यूं तो आम फ्लू की तरह ही होते है। स्वाइन फ्लू का वायरस सूअर से फैलता है। इसमें पहले पीड़ित शख्स का गला खराब होता है और फिर खांसी के बाद तेज बुखार हो जाता है। मरीज को पेट में दर्द जैसी शिकायत भी होती है। अगर वक्त पर इलाज न हो तो फिर मरीज की हालत धीरे-धीरे खराब होने लगती है और देर होने पर दवाओं का असर भी खत्म हो जाता है। डॉक्टरों का मानना है कि ऐसे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा एहतियात बरतने की जरुरत है। गंभीर मामलों में इसके चलते शरीर के कई अंग काम करना बंद कर सकते हैं, जिसके चलते इंसान की मौत भी हो सकती है।
क्या है इलाज?
कुछ हद तक इसका इलाज मुमकिन है। शुरुआती लक्षणों से पता चलता है कि मैक्सिको और अमेरिका के कुछ मरीजों का इलाज टैमीफ्लू और रेलिंज़ा नामक वायरस मारक दवाओं से सफलतापूर्वक किया गया है। ये दवाएं इस फ़्लू को रोक तो नही सकती पर इसके खतरनाक नतीजों को कम कर जान जरूर बचा सकती हैं। स्वाइन प़्लू से बचने का सबसे अच्छा तरीका साफ सफाई है। छींकते समय हमेशा अपनी नाक और मुंह कपड़े से ढक कर रखें। छींकने के बाद अपने हाथ जरूर धोएं। गंदगी से वायरस बड़ी आसानी से फैलते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि ठंडी चीजों कोल्ड ड्रिंक्स और आइसक्रीम से परहेज रखना चाहिए और ऐसा खाना खाना चाहिए जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े।
स्वाइन फ्लू जब 2009 में कहर बन कर बरपा था तब भारतीय बाजारों में इसका टीका अपलब्ध नहीं था लेकिन अब इसके टीके का इस्तेमाल सफलतम रूप में किया जा रहा है और इसकी मदद से वर्तमान में एच1एन1 फ्लू से बचाव संभव है। यदि हम थोडी सी सावधानी बरते तो इस बीमारी से बचा जा सकता है। किसी भी व्यक्ति को अगर स्वाइन फ्लू के लक्षण दिखते हैं तो वो घबराये नहीं क्योंकि अब स्वाइन फ्लू वैक्सीन मौजूद है।स्वाइन फ्लू के टीका का नाम नैसोवैक है जिसे नाक के जरिए दिया जाता है। इस टीके की 0.5 मिली लीटर की एक बूंद किसी भी व्यक्ति को इस रोग से करीब दो साल तक दूर रखती है। यह टीका तीन साल से अधिक के बच्चों और बड़े-बूढ़ों के लिए खास तौर पर उपयोगी है। हालांकि इसे गर्भवती महिला, छोटे बच्चे और कम प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग भी ले सकते हैं। नैसोवैक भारतीय वैज्ञानिकों की देन है जिसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। स्वाइन फ्लू से बचाव के लिए एक और वैक्सीन बनाई गई है। एचएनवैक ब्रांड नामक इस वैक्सीन को कड़े परीक्षण के बाद सुरक्षित और उपयोगी पाया गया है।एक अन्य टीका वैक्सीफ्लू-एस पर अभी परीक्षण चल रहा है। स्वाइन फ्लू वैक्सीन में एक नाम वैक्सीफ्लू-एस (VaxiFlu-S) का भी है जो देसी है और H1N1 के लिए कारगर है। हालांकि इस टीके का इस्तेमाल 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए है लेकिन बच्चों के लिए अभी इसका गहन निरीक्षण जारी है। मार्केट में एक सूई वाला टीका भी उपलब्ध है लेकिन यह अधिक कारगर नहीं है। इसे लेने से बचें। स्वाइन फ्लू जैसी महामारी को जड़ से मिटाने के लिए और भी कई टीके ईजाद किए जा रहे हैं लेकिन अभी उनके आने में देर है।


शनिवार, 2 मार्च 2013

क्या है इसोन धूमकेतू ? What is ISON comet?

क्या है इसोन धूमकेतू ? What is ISON comet?
नया धूमकेतु खोजा गया जो पूर्ण चंद्रमा से भी अधिक उज्जवल हो सकता है
कुछ ऐसा दिखेगा दिन में भी
यह वर्ष खगोलप्रेमियों के लिए विशेष महत्व का हो सकता है। खगोलप्रेमियों एवं पृथ्वी वासियों को इस वर्ष 2013 के अंत में और 2014 के शुरुआती महीनों में आकाश में एक नहीं बल्कि दो-दो चमकते खगोलीय पिंड दिखाई देंगे इनमें एक तो हमारा चन्द्रमा होगा और दूसरा उतना ही बड़ा एक नया खोजा गया पुच्छल तारा (धूमकेतु/कॉमेट) होगा हमारे सौरमंडल के बहुत दूर से एक बहुत बड़ा दड़ियल धूमकेतु सूर्य की तरफ बहुत तेज गति से आ रहा है नवम्बर 2013 में यह सूर्य से निकटतम दूरी पर होगा, तब इसकी चमक चन्द्रमा को भी मात देने लगेगी  
बेलारूस के अर्त्योम नोविचोनोक और रूस के विटाली नेवेस्की
किसने खोजा यह धूमकेतु?
सितम्बर 2012 में दो शौकिया खगोलविदों बेलारूस के अर्त्योम नोविचोनोक और रूस के विटाली नेवेस्की ने इसे अपने प्रेक्षण में पाया था दोनों खगोलविद जब किस्लोवोद्स्क के निकट 21 सितम्बर 2012 को 15.7 इंच (0.4 मीटर) परावर्तक दूरदर्शी से सीसीडी पर इमेज ले रहे थे तब उन्होंने पाया कि उर्ट बादलों की तरफ से कोई ताजा विशाल बर्फ का गोला सौरमंडल में सूर्य की परिक्रमा पथ पर आ रहा है
कितनी दूर यह है पृथ्वी और सूर्य से?
जब यह पहली बार देखा गया तब यह पृथ्वी से 625 लाख मील या एक अरब किलोमीटर दूर था और तब इसकी दूरी सूर्य से 584 मिलियन मील या 93.9 करोड़ किलोमीटर दूर थी। यह तब कर्क तारामंडल के धूमिल कोने में विराजमान था।
कब व कहाँ दिखेगा यह धूमकेतु
इन खगोलविज्ञानियों ने इस पुच्छल तारे (कॉमेट) को C/2012 S1 (ISON) नाम दिया है C/2012 S1 वर्तमान में कर्क तारामंडल के उत्तर पश्चिमी कोने में है। आकाशीय पिंडों की चमक मापने की रिवर्स स्केल पर इसकी चमक 18.8 परिमाण में मापी गयी। सीसीडी उपकरणों से अभी यह खगोलविदों के जद में धूमिल दृश्यमान है और 2013 अगस्त तक यह बायनाकुलर से दृश्यमान होगा जबकि नवम्बर 2013 तक तो यह नंगी आँखों से भी दिखाई देगा, तत्पश्चात मध्य जनवरी 2014 तक यह उत्तरी गोलार्द्ध निवासियों को दृश्यमान रहेगा। इन दोनों शौंकिया खगोलविदों, अर्त्योम नोविचोनोक और विटाली नेवेस्की का मानना है कि देर नवम्बर से मध्य जनवरी तक यह एक भव्य उज्जवल धूमकेतु बनेगा
कहाँ से आते हैं धूमकेतु
इसोन C/2012 S1 (ISON) का नामकरण International Scientific Optical Network (अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक ऑप्टिकल संजाल) का संक्षिप्त रूप है। यह नेटवर्क दुनिया भर में परस्पर सम्बद्ध कम्प्यूटरों का एक विशाल तंत्र होता हैयह रेडियो दूरबीनों से प्राप्त ब्यौरे का संसाधन करता हैविज्ञान पत्रिका न्यू-साइंटिस्ट (New Scientist) में प्रकाशित तथ्यों के अनुसार नेपच्यून ग्रह के पथ के बाहर विशाल धूमकेतुओं का एक बहुत विशाल झुरमुट है जिसे उर्ट क्लाउड कहते हैं। वहाँ से यदा-कदा इन धूमकेतुओं के दीर्घ वृत्ताकार पथ से कोई बर्फ-धूल व चट्टानों का बड़ा सा गोला यानि धूमकेतु सूर्य की प्रभावी क्षेत्रीय गुरुत्व सीमा में आ जाता है और दीर्घवृत्तीय कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करने लगता है
कैसे बनती है इसकी पूँछ और चमक
सूर्य की तेज उष्मा से इसकी धुँधली बर्फीली चट्टानें पिघलने लग जाती हैं। आरम्भ में धूमकेतु एक धुँधली बर्फीली गेंद के जैसा ही होता हैइसके पिघलने से इसके आगे जटाधारी सिर (Head of the comet) जो कि किनारों से धुँधला बनता है, और इस सिर के नीचे होता है, बन जाता है। इसका केन्द्रीय भाग यानि कि  इसका नाभिक सौर विकिरण के दाब से इसे धरती की ओर ठेलता है और पीछे इसकी पूँछ का निर्माण होता है। जैसे-जैसे दीर्घवृत्तीय सौर परिक्रमा पथ पर यह सूर्य के नजदीक आता है इसका आभामंडल (Halo) बनना शुरू हो जाता है। सौर हवाएँ पिघलते हिम धूल को सूर्य के विपरीत बहा ले चलती हैं जिनसे इसकी खास पूँछ का निर्माण होता है
क्या पुच्छल तारा अनहोनी लाता है?
भारत में प्रायः इसे पुच्छल तारे के नाम से जाना जाता है जबकि संस्कृत ग्रंथों में इसे केतु कहा गया है। यहाँ पुच्छल तारों को अशुभ माना जाता हैकिन्तु इन पिंडों का आगमन अन्य खगोलीय घटनाओं की तरह सामान्य घटनाएँ ही है। हालाँकि खतरे की थोड़ी आशंका बनी रहती है कि कहीं कोई धूमकेतु पथभ्रष्ट होकर पृथ्वी के परिक्रमा पथ पर आकर धरती से ही ना टकरा जाए ना जाने कितनी ही बार पृथ्वी विशालकाय धूमकेतुओं की विरलीकृत विशालकाय पूँछ में से गुजर चुकी है पर इसका कोई बड़ा नुकसान रिकार्ड नहीं हुआ है एक आम धारणा है कि धूमकेतु पृथ्वी के नजदीक से गुजरने से पृथ्वी पर कोई अनहोनी या महामारी होती है परन्तु इसका कोई प्रमाण नहीं है। धूमकेतु कोई अनर्थ, अमंगल या अनहोनी नहीं लातेइनके पृथ्वी से टकरा जाने की संभावना भी अति क्षीण ही होती है। यदि ऐसा कभी दर्ज होता है तो मनुष्य अपनी वर्तमान समय की विकसित तकनीक से पृथ्वी से ही रॉकेट-मिसाइल दाग कर इनको परिक्रमा पथ से विचलित कर परे ठेल सकता है वैज्ञानिकों के एक बड़े वर्ग का यह भी मानना है कि पृथ्वी पर जीवन के लिए जरूरी कच्चा माल सुदूर अतीत में धूमकेतुओं से ही आयातित हुआ था फ़्रेड होइल और कुछ खगोलविद ऐसा मानते आये हैं कि अब से कोई साढ़े छ: करोड़ वर्ष पहले एक विशालकाय धूमकेतु के पृथ्वी से आ टकराने से विशालकाय प्राणी डायनासोर का सफाया हुआ था
कब दिखाई देगा पृथ्वी से
यदि अनुमान सच साबित हुए तो यह धूमकेतु आगामी दिसम्बर महीने में दिन में भी चन्द्रमा जैसा दिख सकता है। यह परिमाप में काफी बड़ा लग रहा है ऐसा भी समझा जा रहा है कि इसोन बहुत कुछ 1680 के ग्रेट कॉमेट ऑफ़ न्यूटन धूमकेतु जैसा हो और वैसा ही उसका भ्रमण पथ हो इसी अगस्त माह तक इसोन धरती से लगभग 32 करोड़ कि॰मी॰ तक आ पहुँचेगा और इसका आभामंडल बनना शुरु हो जायेगा और तभी सही अंदाजा भी हो सकेगा कि यह कैसा दिखेगा इसलिए तब तक खगोलप्रेमियों व आम जनों को प्रतीक्षा करनी होगी 
धूमकेतुओं की समयावधि    
वास्तव में धूमकेतु सूर्य के समयावधिक मेहमान होते हैं जो धूमकेतु 200 साल से पहले सूर्य से मिलने चले आते हैं इन्हें लघुआवधिक धूमकेतु (शार्ट पीरियड कॉमेट) कहा जाता हैजो धूमकेतु 200 साल के बाद सूर्य के निकट आ पाते हैं, उन्हें दीर्घआवधिक धूमकेतु (लॉंग पीरियड कॉमेट) कहा जाता है। हमारा चिरपरिचित हेली का धूमकेतु (Halley Comet) लघुआवधिक धूमकेतु है जो हर 75-76 वर्ष के बाद सूर्य के नजदीक आता है

धूमकेतुओं की चमक की भविष्यवाणी सदा पूर्णतया सत्य नहीं होती हालाँकि उनका प्रदर्शन घोषित भविष्यवाणी से कम या अधिक हो सकता है। यदि इस धूमकेतु का प्रदर्शन अनुमानों और गणनाओं के मुताबिक होता है तो संभवतः यह इस सभ्यता की एकमात्र ज्ञात खगोलीय घटना होगी। यदि भूतकाल में झाँकें तो पहले भी कई धूमकेतुओं का बहुत बढ़-चढ़ कर महिमामंडन किया गया था परन्तु उनका प्रदर्शन फीका ही रहा था। अब खगोलविदों के पास अपेक्षाकृत उन्नत उपकरण हैं इसलिए आशा है कि और नजदीक आने पर पूर्व भविष्यवाणी में सुधार होता रहेगा। अभी तो हमें केवल इतना ही जान कर उत्साहित हो जाना चाहिए कि बस कुछ समय बाद ही हम इस अभूतपूर्व खगोलीय घटना के दर्शक बनने जा रहे हैं। 
16 फरवरी 2013 तक अपडेट 

नासा   ने उस दूरस्थ धूमकेतु की पहली तस्वीर ले ली है जो कुछ महीने बाद हम पृथ्वीवासियों को शानदार प्रकाश का नजारा दे सकता हैधूमकेतू जिसका नाम C/2012 S1 (ISON) है, की ताज़ा तस्वीर नासा के डीप इम्पेक्ट स्पेसक्राफ्ट ने 17 और 18 जनवरी को अपने मध्यम रिसोल्यूशन के इमेजर से 36 घंटे के पीरियड में तब ली जब डीप इम्पेक्ट स्पेसक्राफ्ट इस धूमकेतू से 493 लाख मील(793 लाख किलोमीटर) दूर था
बहुत से वैज्ञानिकों ने इसोन के उज्जवल भविष्य की कामना की हैपासाडेना स्तिथ नासा की जेट प्रोपल्सन प्रयोगशाला में डीप इम्पेक्ट स्पेसक्राफ्ट परियोजना के प्रबंधक टिम लार्सन का कहना है कि यह चौथा धूमकेतू है जिसके इससे वैज्ञानिक प्रेक्षण लिए जा रहे हैं और पृथ्वी के पास से गुजरने पर इस संभावित
धूमकेतु के पृथ्वी से दूरस्थ बिंदु से सम्बन्धित आंकड़े एकत्र किये जा रहे हैं 
जैसे ही धूमकेतू सूर्य के नजदीक पहुंचेगा तो सूर्य की गर्मी से धूल व गैसीय वाष्पों से इसकी चमकीली पूंछ बनेगीजबकि अभी इसोन अभी बहुत दूर है फिर भी नासा का कहना है कि अभी भी इसके केन्द्र से चालीस हजार मील विस्तारित/लंबी धूल और गैसों की पूंछ सक्रिय है
इसोन सम्भवतः 26 दिसम्बर 2013 को पृथ्वी से 40 लाख मील की दूरी पर होगा 
इसोन को दीर्घ आवधिक धूमकेतू कहा जाएगा जिनकी परिक्रमण कक्षाएं सैकड़ों, हजारों और लाखों वर्षों की होती हैंनासा का विश्वास है कि सम्भवतः यह इसोन का  पहला  परिक्रमण पथ हैसौर मंडल में धूमकेतू उर्ट बादलों से आते हैं सौर मंडल के बाह्य  सिरे पर बर्फ के विशाल गोलाकार पिंड स्थित हैं जो कि कभी कभी किसी कारण से गुरुत्वाकर्षण विचलन के कारण भटक कर सौरमंडल में सूर्य के चारों और अपना लंबा परिक्रमण पथ बना लेते हैंनासा ने यह भी चेतावनी दी है कि यह धूमकेतू अंजाम से पहले टूट भी सकता है