रविवार, 9 दिसंबर 2012

क्यों जरूरी है कैल्शियम? Why calcium is important?


क्यों जरूरी है कैल्शियम ? Why calcium is important ?
कैल्शियम यह जीवित प्राणियों के लिए अत्यावश्यक होता है। भोजन में इसकी समुचित मात्र होनी चाहिए। खाने योग्य चूर्णातु दूध सहित कई खाद्य पदार्थो में मिलती है। खान-पान के साथ-साथ चूर्णातु के कई औद्योगिक इस्तेमाल भी हैं जहां इसका शुद्ध रूप और इसके कई यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है।
कैल्शियम शरीर द्वारा मजबूत हड्डियों के निर्माण के लिए एक आवश्यक खनिज है और उन्हें अपने जीवन भर में मजबूत रखने के लिए आवश्यक है। कैल्शियम भी ऐसे मांसपेशियों में संकुचन के रूप में अन्य उद्देश्यों के लिए आवश्यक है।प्रत्येक युवा की यह तमन्ना होती है कि उसकी भुजाएं बलिष्ठ हों और चेहरे से ज्यादा आकर्षण पूरे शरीर में दिखे। इसके लिए वे तरह-तरह के व्यायाम करते हैं और अत्याधुनिक मशीनी सुविधाओं से सुसज्जित जिम में भी जाते हैं । मगर क्या आप जानते हैं कि मजबूत भुजाएं और बलिष्ठ शरीर के लिए किस तत्व की जरूरत है?
कैल्शियम एक ऐसा तत्व है, जिसे हर युवा को अपनाना चाहिए। लगभग सभी कैल्शियम (99 प्रतिशत) हड्डियों में संग्रहीत किया जाता है। शेष एक प्रतिशत के शरीर में होता है। कैल्शियम का हमारे शरीर में खास महत्व होता है। आइए देखते हैं हमारे भोजन में यह किस तरह से मिलता है और शरीर को मजबूती प्रदान करता है । इसके महत्व को आमतौर पर सभी माताएं जानती हैं। बच्चों को दिन में दो-तीन बार जबरन दूध पिलाने वाली आज की माताएं जानती हैं कि कैल्शियम उसकी बढ़ती हड्डियों के लिए कितना जरूरी है।
वहीं पुराने समय की या कम पढ़ी-लिखी ग्रामीण माताएं भी इतना तो अवश्य जानती थीं कि दूध पीने से बच्चे का डील-डौल व कद बढ़ता है। यह बच्चे को चुस्त व बलिष्ठ भी बनाता है। भले ही उन्हें दूध में पाये जाने वाले अनमोल कैल्शियम का ज्ञान न हो, जो बच्चों की हड्डियों, दांतों के स्वरूप, उनके आकार व उन्हें स्वस्थ व मजबूत बनाने में अति सहायक सिद्ध हुआ है। इसी कैल्शियम की निरंतर कमी के कारण बच्चों के दांत, हड्डियां व शरीर कमजोर हो जाते हैं।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भी कैल्शियम का बडा महत्व है। कैल्शियम को कमजोर व पतली हड्डियों को मजबूत करने, दिल की कमजोरी, गुर्दे की पथरियों को नष्ट करने और महिलाओं के मासिक धर्म से संबंधित रोगों के उपचार में लाभकारी पाया गया है। 
खाद्य पदार्थ ही कैल्शियम का अच्छा स्रोत हैं डेयरी उत्पाद, दूध, दही और पनीर और हरी पत्तेदार सब्जियां, जैसे कि गोभी और शलजम साग जैसे शामिल हैं।
दैनिक भोजन में हमें कुछ पदार्थों से कैल्शियम तत्व मिल सकता है जैसे पनीर, सूखी मछली, राजमा, दही, गरी गोला, सोयाबीन आदि। 
 इसी प्रकार दूध एक गिलास (गाय) से 260 मिलीग्राम, दूध एक गिलास (भैंस) से 410 मिलीग्राम कैल्शियम मिलता है।
प्रेशर कुकर में पकाये गये चावल, मोटे आटे की रोटी, टमाटर से हमें काफी कैल्शियम मिल सकता है.
कैल्शियम उचित मात्र में खाने से हमारी बुद्धि प्रखर होती है और तर्क शक्ति भी बढ़ती है. हरी पत्तेदार सब्जियों में भी यह तत्व पाया जाता है।
कैल्शियम की कमी के कारण
पाचन कमजोर होने से भोजन में से कैल्शियम का अवशोषण कम होना।
दैनिक आहार में कैल्शियमयुक्त पदार्थों की कमी।
महिलाओं को अधिक मासिक धर्म होना।
नवजात शिशुओं में स्तनपान का अभाव।
धूप, शारीरिक श्रम व यौगिक क्रियाओं का अभाव।
शकरयुक्त पदार्थों का अधिक सेवन।
हमें प्रतिदिन कैल्शियम तत्व निम्न रूप से लेना चाहिए-
* गर्भवती व दूध पिलाने वाली महिलाओं के लिए 1200 मिलीग्राम। 
* 6 मास से छोटे बच्चों के लिए 400 मिलीग्राम। 
* 6 मास से 1 वर्ष के बच्चों के लिए 600 मिलीग्राम।
* 1 वर्ष से 10 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए 800 मिलीग्राम।
* 11 वर्ष से ऊपर सभी आयु वर्ग के लिए 1200 मिलीग्राम। 
कैल्शियम  की कमी के कुछ लक्षण
कन्धों का झुकना।
कमर में वक्रीय झुकाव।
कद में कमी दर्ज होना।
कमर में दर्द।
पेट बाहर आना।
पोस्चर मुद्रा का बदलना।
हड्डियों का पोला, कमजोर होकर टूटना।
झुकी हुई कमर।
गलते हुए दाँत।
बच्चों के दाँत देरी से आना।
शरीर में कमजोरी का बना रहना आदि
आहार के संबंध में विशेष रूप से सतर्क रहें। फास्ट फूड, कोल्ड ड्रिंक्स, तला-भुना, मिर्च-मसाला, मैदे तथा शकर से बने पदार्थों से बचें। प्राकृतिक आहार जैसे अंकुरित अनाज, मौसम के ताजे फल व सब्जियाँ, सलाद, मोटे आटे की रोटी, डेयरी प्रोडक्ट को अपने आहार में विशेष स्थान दें।
तो  आओ और कैल्शियम को अपने भोजन में शामिल करें।
अंतर्जाल  जानकारियों पर आधारित लेख

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

इन्द्रधनुष चाप के आकार के क्यों होते हैं? Rainbows

इन्द्रधनुष चाप के आकार के क्यों होते हैं?

सूर्य का प्रकाश सात रंगों से मिल बना है जिसे संक्षिप्त में 'बैनीआहपीनाला’ शब्द से याद रख सकते हैं  जब सूर्य की रोशनी की किरण प्रिज्म से गुजरती है तो सात रंगों में विभक्त हो जाती है। जब हम इंद्रधनुष को देखते हैं, तो वास्तव में एक विशाल और वक्राकार स्पेक्ट्रम को देख रहे होते हैं। इस स्पेक्ट्रम में बारिश की छोटी-छोटी बूंदें प्रिज्म का काम करती हैं। जब सूर्य की किरणें बूंद से गुजरती हैं तो ये सात रंगों  में विभक्त हो जाती हैं। बूंद के अंदर स्पेक्ट्रम का आकार बूंद के आकार के बराबर होता है। यहाँ कुछ प्रकाश परावर्तित होकर बूंद से हर चला जाता है। इस कारण प्रकाश की किरणे विभिन्न रंगों और विभिन्न दिशाओं में बूंद से हर निकलती हैं। इस विशेषता के कारण इंद्रधनुष तभी दिखाई देता है जब सूर्य हमारे पीछे हो और बारिश सामने हुई हो। अब इसकी धनुषनुमा आकृति पर गौर करते हैं कि यह इस रूप में ही क्यों दिखता है? उदाहरण के लिए लाल रंग लेते हैं। जो बूंदें लाल किरणों को आपकी आँखों की ओर परावर्तित करती हैं  वे सभी आपकी आँखों के साथ समान कोण बनाती हैं। अर्थात् वे सभी इस काल्पनिक क्षैतिज रेखा से बनने वाले शंकु के किनारे पर स्थित होंगी, जो आपकी आँखों के केन्द्र से गुजरती हो। अन्य रंगो के साथ भी यह होता है और इसी कारण इंद्रधनुष का आकारा चाप जैसा होता है। यहाँ एक दिलचस्प बात है कि हर व्यक्ति अपना-अलग इंद्रधनुष देखता है। इंद्रधनुष को कहीं से भी देखा जा सकता है-झरने के पास,फव्वारे के पास और यहाँ तक कि आपके शरीर के पास। बस सूर्य की किरणों को पानी की बूंदों पर चमकना चाहिए।

मंगलवार, 12 जून 2012

कुछ कीड़े प्रकाश की ओर क्यों आकर्षित होते हैं? why does light attract insects?


कुछ कीड़े प्रकाश की ओर क्यों आकर्षित होते हैं? why does light attract insects?
प्रकाश से आकर्षित होते कीट
सामान्यतः पौधे व जानवर प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं। 
पौधे में प्रकाशानुवर्तन और गुरुत्वानुवर्तन के गुण होते हैं 
कीटों में भी यह परिघटना प्रकाशानुवर्तन या प्रकाशानुचलन कहलाती है।
जिसमें पशु व कीड़े/कीट प्रकाश स्त्रोत की ओर गमन करते हैं।
यदि कीड़े/कीट प्रकाश की ओर जाएँ तब यह प्रवृत्ति धनात्मक प्रकाशानुचलन एवं कीड़ों का प्रकाश के दूर जाना ऋणात्मक प्रकाशानुचलन कहलाता है।
अधिकतर कीड़े धनात्मक प्रकाशानुवर्तन का गुण रखते हैं, किन्तु उनका प्रकाश के प्रति आकर्षण भिन्न-भिन्न होता है। कुछ कीड़े ऋणात्मक प्रकाशानुवर्तन का गुण रखते हैं, जैसे खटमल, यह प्रकाश से दूर भागते हैं।
प्रकाश के प्रति कीड़ों की विभिन्न प्रजातियों का भिन्न-भिन्न व्यवहार, उनके विशिष्ट लक्षणों के कारण होता है।
कुछ कीड़े बिना आँखो के भी प्रकाशानुवर्तन का गुण प्रदर्शित करते हैं।
प्रकाश के प्रति इन कीड़ों की संवेदनशीलता इनकी पृष्ठीय सतह के कारण होती हैं। उचित कीड़े प्रकाश किरणों के प्रति अत्याधिक संवेदनशील होते हैं।
उनकी सतह कोशिकाएँ व आँखे,  उनकी प्रकाश स्त्रोत के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाती हैं।
कुछ कीड़े पीले व मरकरी प्रकाश क्षेत्र के प्रति आकर्षित होते हैं।
प्रकाशमय क्षेत्र मादा द्वारा जोड़ा बनाने में भी उपयोग किया जाता है।
वयस्क  दीमक के असंख्य जोड़े प्रकाशानुवर्तन प्रकट करते हैं और मारे जाते हैं बस चंद ही जोड़ा बनाने में कामयाब होते हैं 

सोमवार, 11 जून 2012

क्या वर्षा जल शत प्रतिशत शुद्ध होता है? Is Rain Water is 100% Pure?

क्या वर्षा जल शत प्रतिशत शुद्ध होता है? Is Rain Water is 100% Pure?
आदीवासी एकत्र करते हैं वर्षा का जल
क्या वर्षा जल शत प्रतिशत शुद्ध होता है? क्या इसे हम पेय-जल के तौर पर उपयोग कर सकते हैं?
प्राकृतिक जल में आयन घुले होते हैं। 
वर्षा जल प्राकृतिक आसवन प्रक्रिया, जो कि वाष्पीकरण, संघनन एवं अवक्षेपण की सम्मिलित क्रिया है, से प्राप्त होता है, वर्षा जल बहुत ही तनु विलयन होता है। 
जिसमें बहुत ही कम मात्रा, सामान्यतः 10 से 20 मि.ग्रा. प्रति लीटर में आयन घुले रहते हैं।
वर्षा जल में सभी घुलित आयन 1 से 3 मि.ग्रा. / लीटर की परास में होते हैं। इसलिए यह शुद्ध व पेय योग्य होता है। इस वर्षा जल का पी एच मान 6.7 से 7.2 उपभोग की दृष्टि से सही माना जाता है, जो कि क्षेत्र के अनुसार परिवर्तित होता है। तटीय क्षेत्र में समुद्री फुहार के कारण आयन उच्च मात्रा में विलेय होते हैं। 

pH व T D S
हवा में अधिक कणों की उपस्थिति, पानी के अणुओं से क्रिया कर अधिक आयनों को घोलती है।
वायु में कार्बनडाइऑक्साइड, नाइट्रोजनडाइऑक्साइड एवं सल्फरडाइआक्साईड की अधिक मात्रा से अम्लीय वर्षा होती है जो कि पेड़-पौधों के लिए हानिकारक है। इस वर्षा से पी एच pH मान भी घटता है। शुद्ध वर्षा जल शरीर के लिए आवश्यक खनिज तत्वों व आयनों की पर्याप्त मात्रा नहीं रखता। इसलिए वर्षा जल में उचित परिवर्तन करने के पश्चात, पेयजल के रूप में इसका उपयोग किया जा सकता है।

वर्षा  का जल आरम्भिक बूंदों के साथ वातावरणीय अशुद्धियों युक्त होता है परन्तु कुछ देर की लगातार वर्षा के बाद जल अपेक्षाकृत शुद्ध अवस्था में होता है
ओधोगिक नगरी जैसे आगरा कानपुर फरीदाबाद आदि और वायु प्रदुषित शहर में वर्षा का जल अम्लीय प्रकृति का होता है   

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

क्या ? ? आने वाला है मलेरिया को रोकने वाला टीका Maliria Vaccine

क्या?? आने वाला है मलेरिया को रोकने वाला टीका Malaria Vaccine
पूरे विश्व में प्रतिवर्ष लगभग सात लाख मानव मलेरिया के कारण असमय मृत्यु को प्राप्त होते हैं इस रोग का इतिहास बताता है कि आबादी की आबादी खत्म की है इसने, इसका उपाय सर्वप्रथम डी.डी.टी.के रूप में समक्ष आया पूरी दुनिया में लाखो टन डी.डी.टी. का छिड़काव किया गया, कईं देशो में अलग से मलेरिया उन्मूलन विभाग बनाए गए लेकिन डी.डी.टी.के रूप में मिला उपाय भी मलेरिया के उन्मूलन में सफल ना हो सका वरन् डी.डी.टी. अन्य कईं पर्यावरणीय समस्याएं ले कर पेश आया मलेरिया पर दवा के विकास का इतिहास को देखा जाए तो विश्व में मलेरिया के विरूद्ध टीके विकसित किये जा रहे है यद्यपि अभी तक 100% सफलता नहीं मिली है। पहली बार प्रयास 1967 में चूहों पर किया गया था जिसे जीवित किंतु विकिरण से उपचारित बीजाणुओं का टीका दिया गया। इसकी सफलता दर 60% थी। उसके बाद से ही मानवों पर ऐसे प्रयोग करने के प्रयास चल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने यह निर्धारण करने में सफलता प्राप्त की कि यदि किसी मनुष्य को 1000 विकिरण-उपचारित संक्रमित मच्छर काट लें तो वह सदैव के लिए मलेरिया के प्रति प्रतिरक्षा विकसित कर लेगा। इस धारणा पर वर्तमान में काम चल रहा है और अनेक प्रकार के टीके परीक्षण के भिन्न दौर में हैं। एक अन्य सोच इस दिशा में है कि शरीर का प्रतिरोधी तंत्र किसी प्रकार मलेरिया परजीवी के बीजाणु पर मौजूद सीएसपी (सर्कमस्पोरोज़ॉइट प्रोटीन) के विरूद्ध एंटीबॉडी बनाने लगे। इस सोच पर अब तक सबसे ज्यादा टीके बने तथा परीक्षित किये गये हैं। SPf66 पहला टीका था जिसका क्षेत्र परीक्षण हुआ, यह शुरू में सफल रहा किंतु बाद मे सफलता दर 30% से नीचे जाने से असफल मान लिया गया। आज RTS,S/AS02A टीका परीक्षणों में सबसे आगे के स्तर पर है। आशा की जाती है कि पी. फैल्सीपरम के जीनोम की पूरी कोडिंग मिल जाने से नयी दवाओं का तथा टीकों का विकास एवं परीक्षण करने में आसानी होगी।
मलेरिया का टीका खोजना डॉक्टरों के लिए हमेशा से ही एक बड़ी चुनौती रहा है दुनिया भर के वैज्ञानिक मलेरिया उन्मूलन का कोई कारगर उपाय खोजने में लगे रहे बहुत से रासायनिक और गैर-रासायनिक मलेरिया उन्मूलन के तरीको पर काम हुआ तब जाकर अब मलेरिया से निबटने का उपाय यानि हथियार वैज्ञानिकों के हाथ लगने वाला ही हैब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने मलेरिया रोकने का टीका लगभग विकसित कर ही लिया है इन ब्रिटिश वैज्ञानिकों को इस टीके के पूर्व परिणामों में पूर्ण सफलता मिली है यह टीका मलेरिया परजीवी की सभी प्रजातियों जैसे प्लाज्मोडियम वाईवेक्स, प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम, प्लाज्मोडियम मलेरियाई और प्लाज्मोडियम ओवेल पर कारगर होगा परन्तु अभी यह शोध प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम पर केंद्रित है। प्लाज्मोडियम फैल्सीपरम के जीनोम की पूरी कोडिंग मिल जाने से नयी दवाओं का तथा टीकों का विकास एवं परीक्षण करने में तेज़ी आयी। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीटयूट के डॉ़ सिमोन ड्रापर की अगुवाई में वैज्ञानिकों की एक टीम ने अब एक ऐसा टीका विकसित किया है जो शरीर में खासतौर पर प्लाज्मोडियम फाल्सिपरम को निष्क्रिय कर देता है।
मलेरिया परजीवी रक्त की लाल रक्त कणिकाओं में प्रवेश करके तीव्र गुणित होता है और फिर बीमारी को जन्म देता है। शोध दल के वैज्ञानिकों ने जो तरीका अपनाया वो था कि सर्वप्रथम उस प्रोटीन को पहचनाना जो मलेरिया परजीवी को लाल रक्त कणिकाओं तक पहुचने को आसान बनाता है। प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम परजीवी लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर ‘बासिजिन’ नामक प्रोटीन को चुनता है और इस प्रोटीन के साथ ‘आर.एच.-5’ प्रोटीन को जोड़ देता है। इस क्रिया में लाल रक्त कणिकाओं में उसके लिए प्रवेशद्वार खुल जाता है जहां वह तीव्र गुणित होकर मलेरिया रोग को प्रकट करता है।
वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को रोकने के तरीकों पर काम किया और सफलता मिली, ‘आर.एच.-५’ प्रोटीन के विरुद्ध एंटीबॉडीज को प्रेरित कर के इस रोग को प्रकट होने से पहले ही रोकने में सफलता प्राप्त कर ली है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों का यह सफल शोध नेचर कम्यूनिकेशन पत्रिका में छपा है। मलेरिया का टीका 2015 तक बाजार में आ जायेगायह भरोसा अणु जीव वैज्ञानिक डॉ. जो कोहेन ने दिलाया है। 68 वर्षीय इस मृदुभाषी वैज्ञानिक के पास मलेरिया के टीके का पेटेंट है। इस पर उन्होंने इसी सप्ताह तीसरे चरण का परीक्षण पूरा कर दिया है। उनका दावा है कि इसके टीकाकरण से पांच से लेकर 17 महीने के शिशुओं में 56 फीसद तक मलेरिया की रोकथाम में सफलता मिली है। इस दवा को गंभीर बीमारी के दौरान तीन खुराक देने पर 47 प्रतिशत सफलता हासिल हुई है। इसका परीक्षण सब सहारा क्षेत्र के सात देशों में किया गया है। ये सारे परीक्षण टीके को बाजार में उतारने से पहले हो गये बताये जाते है। और इसके प्रभावों को कुछ माह के शिशुओं से लेकर बड़े बच्चों तक पर अच्छी तरह परखा जा चुका है। अगले दो से तीन साल में इंसानों पर भी इस टीके का इस्तेमाल शुरू करने की योजना है। 



बुधवार, 4 अप्रैल 2012

क्या है पुरुष स्तनवृद्धि ? What is Gynecomastia?

क्या है पुरुष स्तनवृद्धि? What is Gynecomastia? 

नोट: यह लेख कोई विशेषज्ञ लेख नहीं है मात्र जानकारी है
पुंस्तनबृद्धि  Gynecomastia   ग्य्नेकोमस्टिया
पुरुष स्तन वृद्धि
पुंस्तनवृद्धि या पुरुष स्तन वृद्धि उस स्थिति को कहते है जब पुरुष की स्तन ग्रन्थिया वृधि को प्राप्त होने लगती हैं इस अवस्था में पुरुष के स्तन समान्य से बड़े होने लगते हैं
Gynecomastia का उद्गम एक ग्रीक शब्द से है  यह मेडिकल साइंस का शब्द है जिस का समान्यतः मतलब है  महिला जैसी छातियाँ  “woman-like breasts"
नवजात शिशुओं में यदि यह लक्षण हों तो इसका कारण माँ से प्राप्त महिला हार्मोन हैं और यदि यह लक्षण किशोरावस्था में और प्रौढ़/बुजुर्ग अवस्था में हों तो यह एक असामान्य बीमारी या चयापचय संबंधी विकार के साथ जुड़े हालत  होते हैं  
मोटापा भी पुरुष स्तन वृद्धि का एक कारण हैं, इसके और भी बहुत से कारण हो सकते हैं बचपन, किशोर व युवा अवस्था में यह पुंस्तनवृद्धि लज्जा और हीनभावना का कारण बनती है समुद्रतट पर नहाना या सार्वजनिक स्थानों पर निवस्त्र होना शर्मनाक स्थिति पैदा करता है ज्यादातर लड़कों में जिनमे पुंस्तनवृद्धि की वजह मोटापा नहीं है उनमे स्तनों की वृद्धि वयस्कता की आयु तक पहुँचते तक बिना कोई उपचार के साथ अपने आप ही दूर (सिकुड़ ) हो जाती है
पुंस्तनवृद्धि के प्रकार 
पुंस्तनवृद्धि  के कारण  सामान्यतः पुंस्तनवृद्धि के कारण अभी तक अनिश्चित माने जाते हैं
संक्षेप में,
स्वास्थ्य की स्थिति सही ना होना
पुरुष हारमोन की कमी
बढ़ती उम्र
वृष्ण,अधिवृक्कग्रंथि, पियूष ग्रंथि में ट्यूमर का होना
गुर्दे की विफलता
अवटू ग्रंथि की अतिसक्रियता
यकृत की विफलता और सिरोसिस
कुपोषण और भुखमरी
सहवास के निष्क्रियता व अतिसक्रियता दोनों
 कई स्वास्थ्य स्थितियां हार्मोन के स्तर को प्रभावित कर पुंस्तनबृद्धि पैदा करती है व्यक्तिगत मामलों के लिए एक मूल कारण निर्धारित नहीं किया जा सकता है कुछ खास व आम कारण यहाँ वर्णित हैं
नर जनन हारमोन टेस्टोस्टेरॉन का निम्न स्तर
एक स्थिति में यह छाती पर  मादा - हार्मोन संबंधी और नर - हार्मोन संबंधी प्रभाव के  असंतुलन के कारण भी हो सकता है
सेक्स हार्मोन बाध्यकारी ग्लोब्युलिन (SHBG) की अधिकता मुक्त टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन के स्तर को निम्न करता है
10% से कम मामलों में दवा के साइड इफेक्ट पुंस्तनवृद्धि के कारण के लिए बदनाम हैं
ऐसी ही एक दवा Spironolactone (Aldactone)  है जिस के साइड इफेक्टस ऐसे पाए गए हैं
एल्कोकल यानी की शराब का अत्याधिक सेवन हार्मोनल गडबडियां  उत्त्पन्न करता है मादा हारमोन एस्ट्रोजन की अधिकता के कारण छातियों में महिला के लक्षण दिखाई देते हैं  पुरुष की छात्तियाँ अधिक वसा का संचय करती हैं और वह मनुष्य असहज महसूस करता है
एक कारण मोटापा भी माना गया है पुंस्तनवृद्धि का परन्तु हमेशा यह कारण पुंस्तनवृद्धि का नहीं हो सकता है क्यूंकि कम मोटे और बिलकुल मोटे नहीं आदमियों में भी पुंस्तनवृद्धि के लक्षण पाए जाते है और किशोरावस्था में तो बिना मोटापे के लक्षण वाले लड़कों में स्तन-वृद्धि प्रदर्शित होती है
आक्सीटोसिन नामक हारमोन जो कि गाय-भैंस का दूध उतारने के लिए दक्षिण एशिया देशों में बहुतायत में प्रयोग होता है इस इंजेक्शन के बेल वाली सब्जियों में तीव्र वृद्धि के लिए भी प्रयोग किये जाने से मनुष्यों में हारमोन असंतुलन बढ़ गया है जिस में मादा में तो द्वितियिक लैंगिक लक्षण जल्दी दिखने लगते हैं और साथ-साथ नरों में भी मादा के द्वितियिक लक्षणों का प्रदर्शन होता है
व्ययाम, शारीर सौष्ठव निर्माण, तैराकी, बैंच प्रेस भारोत्तोलन, मासपेशीय उठान ड्रग्स और प्रोटीन व स्टेरोय्ड्स युक्त खाद्य भी इस समस्या के जनको में से एक हो सकते हैं
पुंस्तनवृद्धि  के प्रकार  सामान्यतः पुंस्तनवृद्धि के दो-तीन प्रकार हैं,
सबसे अधिक तो उभरे हुए गद्देदार चूचक प्रकार की पुंस्तनवृद्धि पायी जाती है और दूसरा प्रकार जो कि आम नहीं है परन्तु पुंस्तनवृद्धि का शुद्ध रूप है वो है स्तन ग्रंथियों के उत्तको का विकास हो जाना
पुरुष स्तन कैंसर के कारण छातियों का उभर जाना
पुंस्तनवृद्धि  के उपचार
किशोरावस्था में तो यह स्वत ही दूर हो जाती है
इसके अलावा पुंस्तनवृद्धि  के दो प्रमुख उपचार हैं,
१. लिपोसक्शन
२. शल्य चिकित्सा 
यहाँ आप शल्य चिकित्सा का विडियो देख सकते हैं (कृपया यह विडियो आप को व्यथित भी कर सकता है)