क्या होती है अतिचालकता ? What is Superconductivity
वैज्ञानिक निरंतर इस प्रयास मे हैं कि सामान्य प्रयोग मे भी ऐसी चालक तार बनायी जाए जिस का प्रतिरोध(तार के द्वारा अपने मे से हो कर जाने वाली विधुत को रोक कर ताप मे बदल देना इस से विधुत नष्ट होती है) न्यूनतम या शून्य हो ऐसा हो जाने से विधुत के चालन के क्षेत्र मे एक क्रान्ति आ जाएगी.
आओ अब जानते हैं ये क्या है ?
कुछ विशेष परिस्थितियों मे किसी धातु या चालक की विधुत चालकता इतनी बढ़ जाती है कि वह सामान्य विधुतीय नियमों का भी उलंधन करने लगती है ऐसी स्तिथि को अतिचालकता कहते हैं.
जब किसी चालक धातु की तार से विधुत धारा गुजारी जाती है तो तो वो धातु उस विधुत धारा के प्रवाह मे प्रतिरोध अवश्य उत्पन्न करती है.
सन १९११ मे केमर्लिंग ओंस वैज्ञानिक ने यह खोज की कि यदि पारे नामक धातु जो की तरल धातु है उस को परम शून्य ताप के नीचे 4 डिग्री ताप तक ठंडा कर दिया जाए तो अभूतपूर्व रूप से उस की प्रतिरोधक क्षमता शून्य हो जाती है यानि कि नष्ट हो जाती है.ऐसे मे पारा पूर्ण सुचालक धातु बन जाता है.
इन्होने बताया कि जिस ताप के नीचे यह स्तिथि प्राप्त होती है उस ताप को संक्रमण ताप कहते हैं और चालकता की इस दशा को अतिचालकता कहते हैं.
अतिचालक तार से बने हुए किसी बंद परिपथ की विद्युत धारा किसी विद्युत स्रोत के बिना सदा के लिए स्थिर रह सकती है.
यहाँ एक बात विशेष है कि जिन परमाणुओं के बाह्य कोष इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5 अथवा 7 है उनमें संक्रमण ताप उच्चतम होता है और अतिचालकता का गुण भी उत्कृष्ट होता है.
जस्ता (Zn),एलुमिनियम (Al),टिन(Sn) परम शून्य ताप के नीचे अतिचालकता प्रकट करते हैं जबकि समान्यतया प्रयुक्त चालक धातुएं ताम्बा (कापर Cu) और चाँदी (सिल्वर Ag) परम ताप से नीचे ठंडा करने पर भी प्रतिरोधकता प्रकट करते हैं शून्य प्रतिरोध नहीं होते हैं.
यदि वैज्ञानिक कोई ऐसी सस्ती अतिचालक धातु या मिश्र धातु बना लेते हैं तो विधुत भंडारण का काम इतना आसान हो जाएगा कि उसे जब मर्जी इस्तेमाल किया जा सकेगा चाहे अनंत काल तक भी,अतिचालकों उपयोग ऊर्जा के भण्डारण के लिये किया जा सकेगा क्योंकि किसी अतिचालक लूप में एक बार धारा स्थापित करके छोड़ देने पर वह अनन्त काल तक चलती रहेगी.
अतिचालकता के सिद्धांत को समझाने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं. किंतु इनमें से अधिकांश को केवल आंशिक सफलता ही प्राप्त हुई है. वर्तमान काल में बार्डीन, कूपर तथा श्रीफर द्वारा दिया गया सिद्धांत पर्याप्त संतोषप्रद है। इसका संक्षिप्त नाम वी.सी.एस. सिद्धांत है. इसके अनुसार अतिचालकता चालक इलेक्ट्रॉनों के युग्मन से उत्पन्न होती है. यह युग्मन इलेक्ट्रॉनों के बीच आकर्षक बल उत्पन्न हो जाने से पैदा होता है.आकर्षक बल उत्पन्न होने का मुख्य कारण फोनान या जालक कपनों (लैटिस वाइब्रेशन) का अभासी विनिमय (वरचुअल एक्सचेंज) है.
अतिचालक तारों के लगने से लाईन लास शून्य हो जाएगा जिस कारण विधुत को तारों द्वारा दूर दूर तक बिना किसी नुकसान के भेजा जा सकेगा.
इसका उपयोग मैगनेटिक लैविटेशन (magnetic lavitation) में किया जा सकेगा.
भविष्य में इनका उपयोग अत्याधिक छोटे एवं अधिक कार्य करने वाले गर्म ना होने वाले ट्रान्सफार्मर, मोटर, विद्युत जनित्र, आदि बनाने में किया जा सकता है.
एक सस्ते अतिचालक के आ जाने से शूक्ष्म मशीनें बनाना भी सम्भव हो जाएगा क्यूंकि शूक्ष्म मशीनों मे अति बारिक तार लगेंगे अन्य चालकों के बारिक तार भी उपलब्ध हैं परन्तु प्रतिरोध होने के कारण वो गर्म हो जाते हैं और पिंघल भी जाते हैं.
इस समय अतिचालको उपयोग सुपर कंप्यूटर और ब्रेन इमेजिंग उपकरणों में हो रहा है.
वैज्ञानिक निरंतर इस प्रयास मे हैं कि सामान्य प्रयोग मे भी ऐसी चालक तार बनायी जाए जिस का प्रतिरोध(तार के द्वारा अपने मे से हो कर जाने वाली विधुत को रोक कर ताप मे बदल देना इस से विधुत नष्ट होती है) न्यूनतम या शून्य हो ऐसा हो जाने से विधुत के चालन के क्षेत्र मे एक क्रान्ति आ जाएगी.
आओ अब जानते हैं ये क्या है ?
कुछ विशेष परिस्थितियों मे किसी धातु या चालक की विधुत चालकता इतनी बढ़ जाती है कि वह सामान्य विधुतीय नियमों का भी उलंधन करने लगती है ऐसी स्तिथि को अतिचालकता कहते हैं.
जब किसी चालक धातु की तार से विधुत धारा गुजारी जाती है तो तो वो धातु उस विधुत धारा के प्रवाह मे प्रतिरोध अवश्य उत्पन्न करती है.
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http://en.wikipedia.org/wiki/Heike_Kamerlingh_Onnes |
इन्होने बताया कि जिस ताप के नीचे यह स्तिथि प्राप्त होती है उस ताप को संक्रमण ताप कहते हैं और चालकता की इस दशा को अतिचालकता कहते हैं.
अतिचालक तार से बने हुए किसी बंद परिपथ की विद्युत धारा किसी विद्युत स्रोत के बिना सदा के लिए स्थिर रह सकती है.
यहाँ एक बात विशेष है कि जिन परमाणुओं के बाह्य कोष इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5 अथवा 7 है उनमें संक्रमण ताप उच्चतम होता है और अतिचालकता का गुण भी उत्कृष्ट होता है.
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मिश्रधातु अतिचालक |
यदि वैज्ञानिक कोई ऐसी सस्ती अतिचालक धातु या मिश्र धातु बना लेते हैं तो विधुत भंडारण का काम इतना आसान हो जाएगा कि उसे जब मर्जी इस्तेमाल किया जा सकेगा चाहे अनंत काल तक भी,अतिचालकों उपयोग ऊर्जा के भण्डारण के लिये किया जा सकेगा क्योंकि किसी अतिचालक लूप में एक बार धारा स्थापित करके छोड़ देने पर वह अनन्त काल तक चलती रहेगी.
अतिचालकता के सिद्धांत को समझाने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं. किंतु इनमें से अधिकांश को केवल आंशिक सफलता ही प्राप्त हुई है. वर्तमान काल में बार्डीन, कूपर तथा श्रीफर द्वारा दिया गया सिद्धांत पर्याप्त संतोषप्रद है। इसका संक्षिप्त नाम वी.सी.एस. सिद्धांत है. इसके अनुसार अतिचालकता चालक इलेक्ट्रॉनों के युग्मन से उत्पन्न होती है. यह युग्मन इलेक्ट्रॉनों के बीच आकर्षक बल उत्पन्न हो जाने से पैदा होता है.आकर्षक बल उत्पन्न होने का मुख्य कारण फोनान या जालक कपनों (लैटिस वाइब्रेशन) का अभासी विनिमय (वरचुअल एक्सचेंज) है.
अतिचालक तारों के लगने से लाईन लास शून्य हो जाएगा जिस कारण विधुत को तारों द्वारा दूर दूर तक बिना किसी नुकसान के भेजा जा सकेगा.
इसका उपयोग मैगनेटिक लैविटेशन (magnetic lavitation) में किया जा सकेगा.
भविष्य में इनका उपयोग अत्याधिक छोटे एवं अधिक कार्य करने वाले गर्म ना होने वाले ट्रान्सफार्मर, मोटर, विद्युत जनित्र, आदि बनाने में किया जा सकता है.
एक सस्ते अतिचालक के आ जाने से शूक्ष्म मशीनें बनाना भी सम्भव हो जाएगा क्यूंकि शूक्ष्म मशीनों मे अति बारिक तार लगेंगे अन्य चालकों के बारिक तार भी उपलब्ध हैं परन्तु प्रतिरोध होने के कारण वो गर्म हो जाते हैं और पिंघल भी जाते हैं.
इस समय अतिचालको उपयोग सुपर कंप्यूटर और ब्रेन इमेजिंग उपकरणों में हो रहा है.