क्या है अस्थानिक गर्भ ? Ectopic pregnancy ?
जो गर्भ अपने स्थान से हट कर अन्य कहीं स्थापित होता है उस को अस्थानिक गर्भ कहते है वैसे गर्भ की निश्चित जगह तो गर्भाशय यानी यूटरस है परन्तु कईं बार गर्भ इस के आलावा भी कहीं और ठहर जाता है आओ जाने इस बारे में,
नर जनन कोशिका शुक्राणु का मादा जनन कोशिका अंडाणु से मिलन निषेचन कहलाता है निषेचन क्रिया डिम्ब वाहिनी फेलोपियन ट्यूब में संपन्न होती है फिर यह निषेचित अंड फिर गर्भाशय में स्थापित हो कर वृद्धि को प्राप्त होता है परन्तु यदि कभी कभी गर्भावस्था की प्रारम्भिक दिक्कतों के कारण गर्भाधारण के बाद निषेचित अंड गर्भाशय तक नहीं पहुँच पता और डिम्ब वाहिनी में ही अटक जाता है |
An ectopic pregnancy is one in which the fertilized egg implants in tissue outside of the uterus and the placenta and fetus begin to develop there. it's also commonly referred to as a tubular pregnancy, but the egg can plant itself in the cervix, ovaries, and the abdomen.
बहुत कम ऐसा भी होता है कि निषेचन अंडाशय ओवरी में भी हो जाता है |
और कम ही ऐसा भी होता है कि निषेचन डिम्बवाहिनी के बहार या मुहाने पर हो जाता है |
फेलोपियन ट्यूब से बाहर निषेचन या निषेचित अंड का फेलोपियन ट्यूब से बाहर अंडाशय की तरफ मूव कर जाना उदर गुहा गर्भधारण कहलाता है उदर गुहा में ही निषेचित अंड का रोपण हो जाता है और यहीं पर ही उस को रक्त आपूर्ती होने लगती है और भ्रूण विकसित होने लगता है इसप्रकार के गर्भ प्राय रुकते नहीं है परन्तु कईं बार कम स्तिथियों में ही गर्भ का पूरा विकास भी हो जाता है इस प्रकार की सारी गर्भावस्थाओं को अस्थानिक(स्थान से हट कर) गर्भावस्था कहते हैं |
क्या कारण हो सकते हैं अस्थानिक गर्भधारण के ?
फेलोपियन ट्यूब में रुकावट
गर्भाशयी संक्रमण
फेलोपियन ट्यूबों में संरचनात्मक विकार
पूर्व सीजेरियन विकार (यानी पहले कभी यदि शल्य चिकत्सा करवाई गयी हो तो कुछ विकार उत्पन्न/रह जाते है )
पूर्व अस्थानिक गर्भ की पृष्ठभूमि
असफल डिम्बवाहिनी बंधन
प्रजनन शक्ति बढाने वाली दवाओं का सेवन भी इसका एक कारण हो सकता है
और या फिर सहवास के तुरंत बाद ली जाने वाली गर्भ निरोधक पिल्स |
आजकल आधुनिक चिकत्सा उपकरणों से इस स्थिति का उचित उपचार सम्भव है चिकित्सक की निगरानी में कईं सफल प्रसूति केस सम्पूर्ण करावाये जाते हैं परन्तु गंभीर स्तिथियों में चिकित्सक विभिन्न अत्याधुनिक विधियों का प्रयोग करके गर्भ को हटा देते है परम्परागत सीजेरियन तरीकों से कईं बार पुराने समय के चिकित्सक महिला की डिम्बवाहिनियाँ,अंडाशय और गर्भाशय तक हटा देते थे जिस से वो महिला भविष्य में कभी गर्भवती नहीं हो पाती थी परन्तु अब अत्याधुनिक लेप्रोस्कोपिक निदान से बिना किसी अंग हानि के निदान सम्भव है |
(यह मात्र जानकारी है कोई विशेषज्ञ लेख नहीं है)
जो गर्भ अपने स्थान से हट कर अन्य कहीं स्थापित होता है उस को अस्थानिक गर्भ कहते है वैसे गर्भ की निश्चित जगह तो गर्भाशय यानी यूटरस है परन्तु कईं बार गर्भ इस के आलावा भी कहीं और ठहर जाता है आओ जाने इस बारे में,
नर जनन कोशिका शुक्राणु का मादा जनन कोशिका अंडाणु से मिलन निषेचन कहलाता है निषेचन क्रिया डिम्ब वाहिनी फेलोपियन ट्यूब में संपन्न होती है फिर यह निषेचित अंड फिर गर्भाशय में स्थापित हो कर वृद्धि को प्राप्त होता है परन्तु यदि कभी कभी गर्भावस्था की प्रारम्भिक दिक्कतों के कारण गर्भाधारण के बाद निषेचित अंड गर्भाशय तक नहीं पहुँच पता और डिम्ब वाहिनी में ही अटक जाता है |
An ectopic pregnancy is one in which the fertilized egg implants in tissue outside of the uterus and the placenta and fetus begin to develop there. it's also commonly referred to as a tubular pregnancy, but the egg can plant itself in the cervix, ovaries, and the abdomen.
बहुत कम ऐसा भी होता है कि निषेचन अंडाशय ओवरी में भी हो जाता है |
और कम ही ऐसा भी होता है कि निषेचन डिम्बवाहिनी के बहार या मुहाने पर हो जाता है |
फेलोपियन ट्यूब से बाहर निषेचन या निषेचित अंड का फेलोपियन ट्यूब से बाहर अंडाशय की तरफ मूव कर जाना उदर गुहा गर्भधारण कहलाता है उदर गुहा में ही निषेचित अंड का रोपण हो जाता है और यहीं पर ही उस को रक्त आपूर्ती होने लगती है और भ्रूण विकसित होने लगता है इसप्रकार के गर्भ प्राय रुकते नहीं है परन्तु कईं बार कम स्तिथियों में ही गर्भ का पूरा विकास भी हो जाता है इस प्रकार की सारी गर्भावस्थाओं को अस्थानिक(स्थान से हट कर) गर्भावस्था कहते हैं |
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कुछ अन्य सम्भावित अस्थानिक गर्भ की स्तिथियाँ |
क्या कारण हो सकते हैं अस्थानिक गर्भधारण के ?
फेलोपियन ट्यूब में रुकावट
गर्भाशयी संक्रमण
फेलोपियन ट्यूबों में संरचनात्मक विकार
पूर्व सीजेरियन विकार (यानी पहले कभी यदि शल्य चिकत्सा करवाई गयी हो तो कुछ विकार उत्पन्न/रह जाते है )
पूर्व अस्थानिक गर्भ की पृष्ठभूमि
असफल डिम्बवाहिनी बंधन
प्रजनन शक्ति बढाने वाली दवाओं का सेवन भी इसका एक कारण हो सकता है
और या फिर सहवास के तुरंत बाद ली जाने वाली गर्भ निरोधक पिल्स |
आजकल आधुनिक चिकत्सा उपकरणों से इस स्थिति का उचित उपचार सम्भव है चिकित्सक की निगरानी में कईं सफल प्रसूति केस सम्पूर्ण करावाये जाते हैं परन्तु गंभीर स्तिथियों में चिकित्सक विभिन्न अत्याधुनिक विधियों का प्रयोग करके गर्भ को हटा देते है परम्परागत सीजेरियन तरीकों से कईं बार पुराने समय के चिकित्सक महिला की डिम्बवाहिनियाँ,अंडाशय और गर्भाशय तक हटा देते थे जिस से वो महिला भविष्य में कभी गर्भवती नहीं हो पाती थी परन्तु अब अत्याधुनिक लेप्रोस्कोपिक निदान से बिना किसी अंग हानि के निदान सम्भव है |
(यह मात्र जानकारी है कोई विशेषज्ञ लेख नहीं है)
13 टिप्पणियां:
अच्छी जानकारी भरी पोस्ट है
इतने विस्तार से पहली बार यहीं पढ़ा। आभार।
जब गर्भ निरोधक पिल्स के ऐसे साईड इफेक्ट्स हों,तो महिलाएं भला क्या करें- सिवाए पुरूषों पर दबाव डालने के!
आम जीवन के महत्वपूर्ण पहलू पर अच्छी जानकारी युक्त पोस्ट। हिंदी को समृद्ध करने के लिए ऐसे ही ब्लॉगों और पोस्टों की आवश्यकता है। अच्छा प्रयास। जारी रखें।
मेरे लिए नई जानकारी रही. धन्यवाद.
ख़ुशी हुई दर्शन लालजी बावेजा आप ये नेक काम कर रहें हैं जन शिक्षण और जन -विज्ञान लोकप्रियकरण साथ साथ .आभार आपका .बधाई भी .
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी। आभार।
---------
बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।
अस्थानिक ग्रभ के बारे मेँ जानकर अच्छा लगा । आभार।
अस्थानिक ग्रभ के बारे मेँ जानकर अच्छा लगा । आभार।
महिलाएँ ज़रूर कराएँ पेप स्मीयर
यह परीक्षण सर्विक्स (गर्भाशय के मुँह) की स्वस्थ स्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है। सामान्यतः महिलाओं में गर्भाशय की कोशिकाएँ सामान्य एवं स्वस्थ पाई जाती हैं लेकिन कभी-कभी ये कोशिकाएँ असामान्य दिखाई देती हैं, जो कि गर्भाशय के मुँह के कैंसर की उपस्थिति को दर्शाती हैं।
महिलाओं के लिए सर्वाइकल स्मीयर परीक्षण की जरूरत क्यों है?
इस परीक्षण के द्वारा सर्विक्स कैंसर (गर्भाशय के मुँह के कैंसर) के बारे में प्रारंभिक स्थिति में ही पता लगाया जा सकता है। सर्विक्स के स्वस्थ या अस्वस्थ होने का पता इसी परीक्षण द्वारा लगाया जा सकता है। यह परीक्षण २० वर्ष से लेकर ६५ वर्ष तक की महिलाओं का किया जाता है।
सर्विक्स क्या है?
गर्भाशय के निचले भाग को सर्विक्स कहा जाता है। गर्भाशय के निचले भाग में कोशिकाओं की आकृति कभी-कभी बदल जाती है और असाधारण हो जाती है।
क्या यह परीक्षण तकलीफदायक है?
नहीं। परंतु यदि आप तनाव में हो तो कभी-कभी तकलीफ हो सकती है। यदि महसूस कर रहे हों तो गहरी साँस लेकर तनाव दूर कर सकते हैं।
क्या परीक्षण के लिए अस्पताल में भर्ती होना आवश्यक है?
इस परीक्षण में केवल ५ से १० मिनट का समय लगता है। बाह्य रोग विभाग द्वारा यह परीक्षण किया जाता है। भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है।
परीक्षण के पूर्व क्या कुछ करना जरूरी है?
मासिक धर्म के दौरान यह टेस्ट नहीं किया जाता है। पीरियड के पूर्व या बाद में इसे कभी भी किया जा सकता है। यौन संबंध ४८ घंटे पूर्व किसी से न किया हो अथवा योनि में कोई गोली या दवा न रखें।
परीक्षण रिपोर्ट
परीक्षण की रिपोर्ट २४ से ४८ घंटे में दी जाती है।
पुनः परीक्षण कब?
- परिणाम संतोषजनक नहीं होने पर या
- पुनः स्मीयर लेना हो या
- असाधारण परिणाम आया हो तो
- प्रत्येक तीन वर्ष बाद
- पुनः परीक्षण कराया जाना चाहिए।
महिलाओं के लिए सर्वाइकल स्मीयर परीक्षण का महत्व
- सर्वाइकल स्मीयर परीक्षण करवा लेने से समय पर कैंसर होने की पहचान हो जाती है व इलाज संभव हो जाता है।
- दस में से एक महिला के सर्विक्स सेल असाधारण पाए जाते हैं और उन्हें पुनः परीक्षण के लिए बुलाया जा सकता है।
- इस परीक्षण से समय पर मरीज को कैंसर, इन्फेक्शन आदि का पता लग जाता है जिससे उसका उचित इलाज किया जा सकता है।
- कैंसर की एडवांस स्थिति में पहुँच जाने पर ऑपरेशन संभव नहीं रहता। रेडियोथैरेपी, कीमोथैरेपी कराना पड़ती, जो अत्यंत खर्चीली होती है तथा समय भी अधिक लगता है।
- वर्तमान में इस कैंसर से बचाव का वैक्सीन उपलब्ध है(डॉ. विजयसेन यशलाहा,सेहत,नई दुनिया,जून 2011 चतुर्थांक)।
रजोनिवृत्ति और हॉट फ्लैशेज
हॉट फ्लेशेज महिलाओं के शरीर में होने वाले हारमोनल परिवर्तनों का सूचक होते हैं। यह समस्या रजोनिवृत्ति के आसपास महिलाओं में आमतौर पर देखी जाती हैं। शरीर के ऊपरी हिस्से में अचानक से गर्मी महसूस होने लगती है। हॉट फ्लेशेज में कुछ देर के लिए असहज रूप से गर्मी लगने लगती है।
रजोनिवृत्ति के बाद शरीर में इस्ट्रोजन नामक हारमोन का निर्माण कम मात्रा में एवं अनियमित हो जाता है। यही हॉट फ्लेशेज का कारण होता है। एशियाई महिलाओं में हॉट फ्लेशेज की आवृत्ति कम होती है। इसका श्रेय उनके खान-पान को दिया जाता है, जो फाइटो-इस्ट्रोजन्स (वनस्पति इस्ट्रोजन) से भरपूर होता है। कम उम्र की वे महिलाएँ, जिनमें शल्य चिकित्साजन्य रजोनिवृत्ति होती है, उन्हें हॉट फ्लेशेज की समस्या ज्यादा सताती है। ऐसी महिलाओं में यह परेशानी रजोनिवृत्ति की सामान्य उम्र आने तक बनी रहती है।
हॉट फ्लेशेज में अचानक ही तेज गर्मी लगने लगती है, जिससे पसीना आता है और कई बार दिल की धड़कन भी तेज हो जाती है। हर आवृत्ति पर यह स्थिति २ से १० मिनट तक रहती है। हॉट फ्लेशेज की शुरुआत चेहरे पर गर्मी महसूस होने के साथ होती है। इसका पैटर्न हर किसी में अलग-अलग होता है। हो सकता है कि चेहरे के साथ सीने में भी गर्मी लगने लगे या फिर चेहरे और सीने में होने वाला गर्मी का एहसास पूरे शरीर में ही महसूस होने लगे। अंदर से गर्मी लगने के साथ त्वचा पर लालपन दिखाई देता है, छूने पर त्वचा गरम भी गलती है। इसी वजह से इस स्थिति को "हॉट फ्लश" नाम दिया गया है।
कुछ महिलाएँ हफ्ते में कभी-कभी हॉट फ्लेशेज महसूस करती हैं तो कुछ एक ही दिन में कई बार, इसकी आवृत्ति समय बीतने के साथ कम होने लगती है। रजोनिवृत्ति के पहले या इसके बाद की स्थिति में ही ज्यादातर हॉट फ्लेशेज आने की शुरुआत होती है। कभी-कभी रजोनिवृत्ति शुरू होने के कई सालों पहले से ही हॉट फ्लेशेज आने लगते हैं और रजोनिवृत्ति के कई सालों बाद तक आते रहते हैं। कुछ महिलाएँ ऐसी भी होती हैं, जिन्हें कभी हॉट फ्लेशेज की समस्या होती ही नहीं है, वहीं कुछ को यह काफी हल्के और अनियमित रूप से आते हैं।
इलाज...
-चाय और कॉफी जैसे गर्म तासीर वाले पेय पदार्थ बिलकुल बंद कर दें या कम से कम मात्रा में लें।
-तेज मिर्च-मसाले वाला खाना, चॉकलेट और अल्कोहल से दूर रहें।
-गरम वातावरण में न रहें।
-सूत से बने हल्के और आरामदायक कपड़े पहनें। सिंथेटिक और तंग फिटिंग वाले कपड़े नहीं पहनें।
-ठंडे पानी से नहाएँ।
-एक मिनट में ६-८ बार गहरी व लंबी साँस लें।
व्यायामः पैदल चलने, तैरने और साइकलिंग जैसे व्यायाम प्रतिदिन कम से कम ३० मिनट के लिए जरूर करें।
-कुछ देर आराम करने के लिए संगीत सुनें या ध्यान-योग करें।
-खानपान में परिवर्तन से भी हॉट फ्लेशेज में राहत मिल सकती है। सोया उत्पादों को आहार में शामिल करने के कई फायदे हैं, जिनमें हॉट फ्लेशेज और रजोनिवृत्ति के अन्य कष्टकर लक्षणों से बचाव भी शामिल हैं।
-यह सब करने के बाद भी यदि हॉट फ्लेशेज और नाइट स्वेट आना बंद न हो या थोड़ी सी भी राहत न मिले तो चिकित्सक से परामर्श लें(नई दुनिया,जून प्रथमांक 2011)।
महिलाएँ ज़रूर कराएँ पेप स्मीयर
यह परीक्षण सर्विक्स (गर्भाशय के मुँह) की स्वस्थ स्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है। सामान्यतः महिलाओं में गर्भाशय की कोशिकाएँ सामान्य एवं स्वस्थ पाई जाती हैं लेकिन कभी-कभी ये कोशिकाएँ असामान्य दिखाई देती हैं, जो कि गर्भाशय के मुँह के कैंसर की उपस्थिति को दर्शाती हैं।
महिलाओं के लिए सर्वाइकल स्मीयर परीक्षण की जरूरत क्यों है?
इस परीक्षण के द्वारा सर्विक्स कैंसर (गर्भाशय के मुँह के कैंसर) के बारे में प्रारंभिक स्थिति में ही पता लगाया जा सकता है। सर्विक्स के स्वस्थ या अस्वस्थ होने का पता इसी परीक्षण द्वारा लगाया जा सकता है। यह परीक्षण २० वर्ष से लेकर ६५ वर्ष तक की महिलाओं का किया जाता है।
सर्विक्स क्या है?
गर्भाशय के निचले भाग को सर्विक्स कहा जाता है। गर्भाशय के निचले भाग में कोशिकाओं की आकृति कभी-कभी बदल जाती है और असाधारण हो जाती है।
क्या यह परीक्षण तकलीफदायक है?
नहीं। परंतु यदि आप तनाव में हो तो कभी-कभी तकलीफ हो सकती है। यदि महसूस कर रहे हों तो गहरी साँस लेकर तनाव दूर कर सकते हैं।
क्या परीक्षण के लिए अस्पताल में भर्ती होना आवश्यक है?
इस परीक्षण में केवल ५ से १० मिनट का समय लगता है। बाह्य रोग विभाग द्वारा यह परीक्षण किया जाता है। भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है।
परीक्षण के पूर्व क्या कुछ करना जरूरी है?
मासिक धर्म के दौरान यह टेस्ट नहीं किया जाता है। पीरियड के पूर्व या बाद में इसे कभी भी किया जा सकता है। यौन संबंध ४८ घंटे पूर्व किसी से न किया हो अथवा योनि में कोई गोली या दवा न रखें।
परीक्षण रिपोर्ट
परीक्षण की रिपोर्ट २४ से ४८ घंटे में दी जाती है।
पुनः परीक्षण कब?
- परिणाम संतोषजनक नहीं होने पर या
- पुनः स्मीयर लेना हो या
- असाधारण परिणाम आया हो तो
- प्रत्येक तीन वर्ष बाद
- पुनः परीक्षण कराया जाना चाहिए।
महिलाओं के लिए सर्वाइकल स्मीयर परीक्षण का महत्व
- सर्वाइकल स्मीयर परीक्षण करवा लेने से समय पर कैंसर होने की पहचान हो जाती है व इलाज संभव हो जाता है।
- दस में से एक महिला के सर्विक्स सेल असाधारण पाए जाते हैं और उन्हें पुनः परीक्षण के लिए बुलाया जा सकता है।
- इस परीक्षण से समय पर मरीज को कैंसर, इन्फेक्शन आदि का पता लग जाता है जिससे उसका उचित इलाज किया जा सकता है।
- कैंसर की एडवांस स्थिति में पहुँच जाने पर ऑपरेशन संभव नहीं रहता। रेडियोथैरेपी, कीमोथैरेपी कराना पड़ती, जो अत्यंत खर्चीली होती है तथा समय भी अधिक लगता है।
- वर्तमान में इस कैंसर से बचाव का वैक्सीन उपलब्ध है(डॉ. विजयसेन यशलाहा,सेहत,नई दुनिया,जून 2011 चतुर्थांक)।
ल्यूकोरिया में योग
अधिकतर महिलाएं ल्यूकोरिया जैसे-श्वेतप्रदर,सफेद पानी जैसी बीमारियो से जुझती रहती हैं, लेकिन शर्म से किसी को बताती नहीं और इस बीमारी को पालती रहती हैं। यह रोग महिलाओं को काफी नुकसान पहुंचाता है। इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए पथ्य करने के साथ-साथ योगाभ्यास का नियमित अभ्यास रोगी को रोग से छुटकारा देने के साथ आकर्षक और सुन्दर भी बनाता है।
यह वो बीमारी है जिससे भरी जवानी में महिलायें बूढ़ी और कमजोर नजर आने लगती हैं। श्वेतप्रदर सफेद पानी, व्हाइट डिस्चार्ज या ल्यूकोरिया महिलाओं की एक आम बीमारी है जिसमें कभी सफेद तो कभी मटमैला या पीला टाइप का दुर्गन्ध द्रव्य योनि से निरन्तर निकलता रहता है जो कई दिनों एवं महीनों तक जारी रहता है । इसे ल्यूकोरिया या श्वेतप्रदर रोग क हते हैं। योनि की भीतरी झिल्ली, गर्भाशय मुख या गर्भाशय से निकलने वाले मांस से धोवन की तरह, कभी योनि में खुजली और जलन पैदा करने वाला, दुर्गन्धयुक्त सफेद पानी के बहते रहने से अक्सर रोगी निर्बल, उदास और परेशान रहती हैं और शर्म के मारे रोग के बारे में किसी को कुछ बताना नहीं चाहती। श्वेतप्रदर के निरन्तर स्त्राव से महिलाएं धीरे -धीरे क मजोर और निढाल हो जाती हैं और भरी जवानी में बूढ़ी नजर आने लगती हैं। रोग उत्पत्ति के कारण अत्यधिक आलस्य भरी जीवन-यापन अर्थात शारीरिक श्रम कम करना, हर वक्त लेटे रहने की आदत, उत्तेजक पदार्थो का अधिक सेवन जैसे मांस, मछली, अंडा, शराब, चाय, काफी, तेल, मिर्च, खट्टी तथा चटपटी चाट आदि बार-बार तथा थोड़ी-थोड़ी देर बाद खाते रहने की आदत, कामोत्तेजक और अश्लील साहित्य, सिनेमा तथा मनोरंजन के साधनों में अधिक रूचि, अत्यधिक सहवास, मासिक धर्म की अनियमितता, छोटी उम्र में गर्भ धारण करना या बार-बार गर्भपात होना, भीतरी योनि में फोड़ा, फुन्सी या रसूली का होना अथवा ट्राइकोमोनास वेजाइनल या फंगस जीवाणु की उपस्थिति होने आदि से ल्यूकोरिया हो सकता है । लक्षण: श्वेतप्रदर में रोगी के हाथ पैर, पिंडलियां, घुटनों और पैर की हड्डियों में काफी दर्द होता है , पेड़ू में भारीपन, शरीर टूटना, कमर दर्द, सिर दर्द, स्मरण शक्ति में कमी, या चक्कर आना, हाथ-पैरों में जलन, योनि का गीला रहना, योनि में खुजली या जलन होना, शरीर में कमजोरी, कैल्शियम की कमी, योनिगंध, योनिशूल, खून की कमी, चेहरे का पीला पड़ना, आंखों का काला होना, चेहरा धंस जाना भूख न लगना, सिर के बाल अत्यधिक मात्रा में झरना ,आंखों का दिनों दिन रोशनी कम होना, कब्जियत बना रहना, बार-बार मूत्र आना, किसी काम में मन न लगना, उत्साहहीनता, चिड़चिड़ापन आदि होना ल्यूकोरिया के लक्षण होते हैं । यौगिक क्रिया: प्राणायाम ओम प्राणायाम 21 बार, क पालभाति 5 मिनट, अणुलोम-विलोम5 मिनट, भ्रामरी प्राणायाम 5 बार। आसन : वज्रासन, शशांकासन, भुजंगासन, अर्धशलमासन,धनुरासन, पश्चिमोत्तोनासन, कन्धरासन। बन्ध : मुलबन्ध का विशेषरूप से अभ्यास इस बीमारी में काफी लाभदायक होता है । मुद्रा : अश्विनी मुद्रा, सहजोली मुद्रा, विपरित क रणी मुद्रा और क्रमवार से धीरे धीरे सूर्य नमस्कार का अभ्यास। अंतत: यथाशक्ति शारीरिक श्रम करें , दिन में सोना बंद करें , आसन, प्रणायाम और प्रात: खुली हवा में प्रत्येक दिन टहलने का दैनिक कार्यक्रम बनायें। क्रोध, चिन्ता, शोक , भय से दूर रहें । सदैव प्रफुल्लित रहें । आहार : सभी हरी शाक -सब्जियां, सूप, खिचड़ी, दलिया, चोकरयुक्त आंटे की रोटी, फल में केला, अंगूर , सेव, नारंगी, अनार, आवंला, पपीता, चीकू , मौसमी, पुराना शाली चावल,चावल का धोवन तथा मांड़ , दूध, शक्कर, घी, मक्खन, छाछ, अरहर और मूंग की दाल, अंकुरित मूंग, मोठ आदि का समुचित प्रयोग करें। स्वच्छतापालन, ध्यान, सत्संग और स्वाध्याय का अभ्यास। अपथ्य : तेज मिर्च मसालेदार पदार्थ, तेल में तले पदार्थ, गुड़ , खटाई, अरबी, बैगन, अधिक सहवास, रात में जागना, उत्तेजक साहित्य, चाय, काफी,अधिक टीवी, संगीत-मजाक से बचे। पथ्य का पालन करते हुए योगाभ्यास के नियमित अभ्यास से कुछ ही दिनों में रोग से तो छुटकारा मिलेगा ही साथ ही साथ आकर्षक और सुन्दर भी आप दिखेंगी-डा. नन्द कुमार झा, योग व प्राकृतिक चिकित्सक(हिंदुस्तान,पटना,20.8.2010)
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