मंगलवार, 30 नवंबर 2010

विधुत बल्ब का फिलामेंट क्यूँ नहीं जलता ? Why does not the electric Filament in an electric bulb burn up ?

विधुत बल्ब का फिलामेंट क्यूँ नहीं जलता ?
  विधुत बल्ब में एक स्प्रिंग की तरह की तार होती है जो की लाल तप्त हो जाती है और तब प्रकाश उत्पन्न  होता है यह फिलामेंट कहलाता है वैसे  विधुत बल्ब को बोलचाल की भाषा में बल्ब कह देते है इसका नाम उद्दीप्त दीपक या इन्कैंडिसेंट लैम्प (incandescent lamp) होता है |
जब  इस फिलामेंट तार में विधुत प्रवाहित होती है तो तब यह गरम होकर प्रकश देने लगता है। 
फिलामेंट बनने के लिए उच्च गलनांक वाली धातु की आवश्यकता होती है |
यदि कम गलनांक वाली धातु का प्रयोग कर लिया जाए तो वो पिंघल जाएगी 
टंग्स्टन Tungsten धातु का प्रयोग किया जाता है ,जिसका गलनांक 3140 डीग्री सेंटीग्रेट होता है और जबकि फिलामेंट को चमकने के लिए 2700 डीग्री सेंटीग्रेट तापमान की जरूरत होती है |
फिलामेन्ट को काँच के बल्ब के अन्दर इसलिये रखा जाता है ताकि अतितप्त फिलामेन्ट तक वायुमण्डलीय आक्सीजन न पहुँच पाये और इस तरह क्रिया करके फिलामेन्ट को जला ना सके।
  1. Outline of Glass bulb
  2. Low pressure inert gas (argon, neon, nitrogen)
  3. Tungsten filament
  4. Contact wire (goes out of stem)
  5. Contact wire (goes into stem)
  6. Support wires
  7. Stem (glass mount)
  8. Contact wire (goes out of stem)
  9. Cap (sleeve)
  10. Insulation  
  11. Electrical contact
आओ जाने विधुत बल्ब  के आविष्कार का  इतिहास
पहला बिजली का बल्ब 1800ई में हम्फ्री डेवी एक अंग्रेजी वैज्ञानिक द्वारा बनाया गया था. उन्होंने बिजली के साथ प्रयोग किया और एक बिजली बैटरी का आविष्कार किया. जब उन्होंने अपनी बैटरी के साथ कार्बन का एक टुकड़ा  तार के साथ जोड़ा,कार्बन का टुकड़ा चमकने लगा और प्रकाश उत्पन्न हुआ,इसको बिजली का  आर्क कहा जाने लगा |
बाद में 1860 में,अंग्रेजी भौतिक विज्ञानी सर जोसेफ विल्सन हंस (1828-1914) ने एक व्यावहारिक, लंबे समय तक चलने वाले बिजली की रोशनी का बल्ब बनाने का प्रदर्शन किया,उन्होंने पाया कि एक कार्बन रेशा पेपर अच्छी तरह से काम करेगा लेकिन वह चमकने के साथ जल्दी से जल गया| 
1877 में अमेरिकी चार्ल्स फ्रांसिस ब्रश दवारा निर्मित कुछ कार्बन प्रकाश आर्क्स का कुछ सड़कों पर प्रकाश उत्तपन करने के लिए इस्तेमाल किया गया,कुछ बड़े कार्यालय भवनों में और कुछ दुकानों में प्रयोग किया गया परन्तु इस बिजली की रोशनी का लाभ केवल कुछ लोगों को ही हो सका | 
1879 में आविष्कारक थॉमस अल्वा एडीसन (यूएसए) ने  पता चलाया  कि एक ऑक्सीजन मुक्त ग्लास बल्ब में कार्बन फिलामेंट को प्रकाशित किया जाए,परन्तु वह बल्ब भी 40 घंटे के लिए ही  जला था, एडीसन ने अंततः एक बल्ब का उत्पादन किया जो  1500 से अधिक घंटे के लिए चमक सकता था
1910 में विलियम डेविड कूलिज (1873-1975) एक टंगस्टन फिलामेंट जो भी पुराने फिलामेंटस से अधिक समय तक तप्त रह के प्रकाश दे सकता था का आविष्कार किया और शुरू हुआ गरमागरम बल्ब दुनिया में क्रान्तिकारी परिवर्तन |
चित्र  हिंदी विकी से साभार

बुधवार, 24 नवंबर 2010

क्या होती चेयुइंगम ? What is Chewing Gum?

क्या होती चेयुइंगम ? What is Chewing Gum?
बचपन में किसी से सुना था की चेयुइंगम पशु चर्बी से बनती है परन्तु ये सच नहीं है |
तो फिर होती क्या है चेयुइंगम ?
चेयुइंगम  संयोगवश खोजी  गयी  है वो कैसे उन्नसवी सदी के 1869 ई. में रबर के नए नए विकल्पों की खोज तेज़ी से की जा रही थी तभी थामस एडम्स नामक व्यवसायी सापोडीला(Manilkara zapota,  Sapodilla) चीकू फल के  पेड़ की गोंद को मुंह में डाल कर चबाया तो उन्हें यह गोंद बहुत ही स्वादिष्ट लगी और उन्होंने विचार किया क्यों न इसको और लोगो तक भी पहुंचाया जाए बस उन्होंने इस गोंद (गम) का पेटेंट(1871) करवाया और 'एडम्स न्युयोर्क गम' गम के नाम से मार्केट में उतरा और बेचना शुरू कर दिया |
इसका चिपचिपा और लिसलिसा सा स्वाद सब को अच्छा लगा,मिठास होने और चबाते ही चले जाने के कारण यह छोटे बड़े सब में बहुत लोकप्रिय हुई | चीकू फल के पेड़ के तने के साथ एक वक्राकार कट बनाने से तने के  अंदर से गाढ़ा सफेद रस निकलता है जिसे छोटे बैग में एकत्र करते हैं कारखाने में इस रस को कॉर्न सिरप, ग्लिसरीन, चीनी फ़ूड कलर और स्वादिष्ट बनाने का मसाला के साथ उबला जाता है तो यह मिक्सचर सूख जाता है इसको फैला कर मनचाहे  आकार के टुकड़ों में काट कर चेयुइंगम बन जाती है|
बाद में इस सापोडीला चेयुइंगम  में बहुत सुधार हुए,डा. सी मैंन ने इस में पैपासीन नाम का एक सुगन्धित  पदार्थ मिला कर इसको बाजार का राजा बना दिया सुगन्धित  पैपासीन युक्त सापोडीला चेयुइंगम ने कीं सालों तक बाज़ार में राज़ किया |
सापोडीला के राज़ के बाद अब चेयुइंगम गुडा सिपैक प्रजाति के पेडों के गोंद  से बनते है       

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

कितने प्रकार का होता है भय ? Types of Phobia

वैसे तो भय कई प्रकार का होता है पर यहाँ पहली किस्त में मुख्य 10 प्रकार पहले प्रस्तुत है|
1.मकड़ियों का विकृत भय (Arachnophobia):
arachnophobia भय की इस प्रकार में मकड़ियों से डर लगता है यहाँ तक की मकड़ियों के चित्र देख कर भी डर लगता है ये लगता रहता है उसके कपडो में या फिर उसके आसपास मकड़ी है






2.समाज का भय (Social Phobia ):
social anxiety
इस प्रकार के भय में व्यक्ति को समाज और लोगो से डर लगा रहता है उदाहरण के तौर पर एक विद्यार्थी पहले दिन कक्षा में नहीं जाता की प्रोफेसर जी उस को सब के सामने अपना परिचय देने को कहेगे|social anxiety occurring only in specific situations, such as a fear of public speaking.

 



3.उड़ान का भय (Aerophobia):
air इस प्रकार के भय में उड़ान ,हवाई ज़हाज़ का सफर आदि स्तिथीयां आती है Aerophobia is a term used to describe an irrational fear of breezes, fresh air, flying or any association with flights and flying.   



 


4.एक सीमित स्थान में बंद किये जाने का भय (Claustrophobia):
Claustrophobia
इसमें ये डर लगा रहता है कि वो एक सिमित जगह पर बंद है या बंद जगहों पर जाने से डर जाता है जैसे लिफ्ट या फिर स्केन मशीनों में जाने का भय 
Claustrophobia is an anxiety disorder in which someone has an intense and irrational fear of confined or enclosed spaces.





5.ऊँचाईयों से भय (Acrophobia):
fear of high
 ऊँची जगहों पर जाने का डर  An abnormal fear of high places.





  


6.उलटी आ जाने का भय (Emetophobia):
emetophobia
इसमें ये भय रहता है की उसको बदबू से सफर में या कही जाने से उलटी आ जाएगी Emetophobia is an intense, irrational fear or anxiety pertaining to vomiting.







7.भीड़ या खाली जगहों का भय (Agoraphobia):
Agoraphobia
अधिक भीड़ वाली जगह या फिर सुनसान जगह पर जाने का भय,a morbid fear of open spaces (as fear of being caught alone in some public place).



   


8.कैंसर हो जाने का डर (Carcinophobia):
carcinophobia
सदा ये डर बना रहता है की उसको कैंसर है या हो जाएगा Carcinophobia, the fear of cancer, is among the most widespread phobias, and it is not hard to imagine why.



 



9.बवंडर,तड़ित का भय  (Brontophobia):

Brontophobia
इस प्रकार में सदा बवंडर,तड़ित का डर बना रहता है वर्ष में जाने से भी डर लगता है Brontophobia is better known as fear of lightning and thunder.




  



10.मर जाने का भय (Necrophobia):
Necrophobia
जबकि पता है की सब ने एक दिन मर जाना है फिर भी हर समय ये भय लगा रहना की की मै मरने वाला हूँ या मर जाऊँगा,मृत को देखने का डर Necrophobia, is also known as Fear of Death and Fear of Dead Things. It is a surprisingly common phobia.






सभी चित्र गूगल इमेज से लिए गए है| 

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

क्या मछलियाँ भी सूँघ सकती है? Can fish smell?

जैसे हम गंध को नाक से सूंघ लेते है क्या मछलियाँ भी सूँघ सकती है?
ये प्रश्न अक्सर सोचने पर मजबूर कर देता होगा मछलियाँ तो पानी के अंदर रहती है और गिल्ज़(गल्फडो) से सांस लेती है और पानी में तो हवा भी नहीं चल रही होती फिर मछलियाँ पानी के भीतर गंध का अनुभव कैसे कर लेती होंगी?
इस प्रश्न जानने के लिए पहले ये जानना जरूरी है कि मछली की शारीरिक बनावट कैसी होती है और क्या उस की नाक भी होती है?
nostrils-1
 nostrils मछली के नथुने होते है  मछली की नाक ऊपर सिर पर दो  खुलने वाले नथुने से बनी है प्रत्येक नथुने में छिद्र होते है दो जोड़ी नथुने के बीच में एक फ्लैप होता है जो इन छिद्रों को अलग अलग करता है वैसे अलग अलग प्रजाति की अलग अलग बनावट होती है यानी अंतर,नाक के भीतर अनगिनत कोशिकाएं होती है पानी एक नथुने से भीतर जाता है और इन कोशिकाओं को छूता है इन कोशिकाओं के संवेदी रिसेप्टर्स गंध को पहचान कर मस्तिष्क को सूचना प्रदान करते है|
यहाँ एक बात काबिले गौर है कि मछली के नथुने यानी नाक उसके श्वशन तन्त्र Respiratory System के हिस्से नहीं है|मछली का श्वशन तन्त्र  भी जटिल व्यवस्था है चलो जान ही लेते है ये भी
fish_system  पानी मुख से अंदर जाता है और गिल्ज़ से होता हुआ बाहर आ जाता है gills_2     
गिल्ज़ में पानी में घुलनशील आक्सीजन पतली झीळली वाली रक्त नलिकाओं में से रक्त के साथ जा मिलती है और ह्रदय की कार्य प्रणाली से सारे शरीर में पहुँच जाता है |                                             gills  
मछलियों को सूघने के लाभ:  
1- इनको भोजन की तलाश में मदद मिलती है|
2- इस से इनको खतरे भापने में मदद मिलती है |
3- इनको अपने आश्रय या कह लो घर तक पहुचने में मदद मिलती है |
4- ये इस गुण से दो पानियों का अंतर तक पहचान जाती है |
5- खतरे की चेतावनी देने के काम भी आता है यह गुण|
नोट :सभी चित्र गूगल इमेज से साभार

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

पक्षी बिजली की तारों पर बिना विधुत झटका लगे कैसे बैठ जाते है? How do Birds sits on electric lines?

electric-shock-2

कई बार  हम ये सोचते है कि पक्षी बिजली की तारों पर बिना विधुत झटका लगे कैसे बैठ जाते है आम तौर पर बिजली के खंभोंवाली तारों पर हम पक्षी जैसे कौवों,कबूतरों,चिडियों आदि पक्षियों को तारों पर बैठे देखते है और सोचते है इन को करंट या बिजली का झटका ( Electric shock) क्यूँ नहीं लगता है|

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   इसको जानने के लिए हमे ये जानना जरूरी हो जाता है की ये बिजली का झटका ( Electric shock) होता क्या है उच्च वोल्टेज लाइनों के साथ संपर्क में आने से शरीर के माध्यम से विद्युत धारा के प्रवाहित हो जाने पर एक ज़बरदस्त अभिघात होता है जिस के फलस्वरूप जल जाना और ह्रदय की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है इस स्थिति में मृत्यु हो जाती है|

जीवों का शरीर विधुत का सुचालक होता है  जब एक पक्षी एक बिजली लाइन पर खड़ा है वह एक ही कंडक्टर से जुड़ा है तो उस के शरीर से विधुतधारा का प्रवाह नहीं होगा परन्तु जैसे ही वो दुसरी तार को छुयेगा तो विधुत परिपथ पूरा हो जाएगा और पक्षी के शरीर से उच्च वोल्टता का प्रवाह होने से जल जाना या फिर ह्रदयगति रुक जाना सम्म्पन होगा और उस की तत्काल मृत्यु हो जायेगी 

हाक, ईगल, और अन्य बड़े पक्षी हजारोंकी संख्या में बिजली लाइनों से उलझ कर करंट लगने से electrocution से हर साल मर जाते हैं|

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   Only when the bird completes a circuit, either by touching two lines simultaneously,or by touching a line and a ground source (say, a metal pole that is anchored into the ground), will the electic current change its path and pass through the bird on its way to the alternative path (the other wire or the metal pole).
or When a bird sits on an electric line, there is no circuit completed. Bird sits on the same side of the circuit. If he were to sit on two wires (or one wire and a ground source) at the same time, an electrical circuit would be completed, and the resulting surge of current through his body would electrocute him.

तो अब समझ चुके होंगे कि क्यों और कब तक पक्षी इन पावर की तारों पर बैठ सकते है जी

सभी चित्र गूगल इमेज से साभार

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

क्या होता है इन्द्रधनुष What is a Rainbow ?

इन्द्रधनुष Rainbow यह एक बहुत ही सुंदर प्रकाशीय विक्षेपण की धटना है जिसे न समझ पाने के कारण इसे पुराने समय में इन्द्रधनुष,रेनबो,बुढीया का बेड़ा,मेघधनुष आदि नामों से जाना जाता रहा है|

rainbow-1 आओ जाने वास्तव में इन्द्रधनुष Rainbow होता क्या है ?

ये जानने के लिए पहले जाना जायेगा

  प्रकाश का विक्षेपण dispersion of light through prism: सूर्य के rainbow-2 प्रकाश की  कोई किरण जब प्रिज्म में से गुजरती है तो वो सात रंगों में विभक्त्त हो जाती है क्यूंकि सूर्य का प्रकाश सात रंगों से मिल कर बना होता है

ये सात रंग है                                    

बैनीआहपीनाला=बैंगनी,नीला,आसमानी,हरा,पीला,नारंगी,लाल

VIBGYOR=Violet,Indigo,Blue,Green,Yellow,Orange,Red 

  • जब सूर्य का प्रकाश प्रिज्म से होकर गुजरता है, तो वह अपवर्तन के पश्चात् प्रिज्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ विभिन्न रंगों के प्रकाश में बँट जाता है। इस प्रकार से प्राप्त रंगों के समूह को वर्णक्रम कहते हैं तथा श्वेत प्रकाश का अपने अवयवी रंगों में विभक्त होने की क्रिया को वर्ण विक्षेपण कहते हैं।
  • सूर्य के प्रकाश से प्राप्त रंगों में बैंगनी रंग का विक्षेपण सबसे अधिक एवं लाल रंग का विक्षेपण सबसे कम होता है।
  • न्यूटन ने 1666 ई. में पाया कि भिन्न-भिन्न रंग भिन्न-भिन्न कोणों से विक्षेपित होते हैं।
  • वर्ण-विक्षेपण किसी पारदर्शी पदार्थ में भिन्न-भिन्न रंगों के प्रकाश के भिन्न-भिन्न वेग होने के कारण होता है। अतः किसी पदार्थ का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न होता हैं

    वर्षा  के ठीक बाद बादलों में पानी की छोटी छोटी बूंदें रह जाती है जो कि प्रिज्म की भांति व्यवहार करती है जिन से प्रकाश विक्षेपित dispersion of light  हो कर रंगों की एक पट्टी बनाता है जिसे वर्णक्रम स्पेक्ट्रम Spectrum कहते है इसी को इन्द्रधनुष के नाम से जाना जाता है|  rainbow-3

    चित्र गूगल इमेज से साभार