विधुत बल्ब में एक स्प्रिंग की तरह की तार होती है जो की लाल तप्त हो जाती है और तब प्रकाश उत्पन्न होता है यह फिलामेंट कहलाता है वैसे विधुत बल्ब को बोलचाल की भाषा में बल्ब कह देते है इसका नाम उद्दीप्त दीपक या इन्कैंडिसेंट लैम्प (incandescent lamp) होता है |
जब इस फिलामेंट तार में विधुत प्रवाहित होती है तो तब यह गरम होकर प्रकश देने लगता है।
फिलामेंट बनने के लिए उच्च गलनांक वाली धातु की आवश्यकता होती है |
यदि कम गलनांक वाली धातु का प्रयोग कर लिया जाए तो वो पिंघल जाएगी
टंग्स्टन Tungsten धातु का प्रयोग किया जाता है ,जिसका गलनांक 3140 डीग्री सेंटीग्रेट होता है और जबकि फिलामेंट को चमकने के लिए 2700 डीग्री सेंटीग्रेट तापमान की जरूरत होती है |
फिलामेन्ट को काँच के बल्ब के अन्दर इसलिये रखा जाता है ताकि अतितप्त फिलामेन्ट तक वायुमण्डलीय आक्सीजन न पहुँच पाये और इस तरह क्रिया करके फिलामेन्ट को जला ना सके।
- Outline of Glass bulb
- Low pressure inert gas (argon, neon, nitrogen)
- Tungsten filament
- Contact wire (goes out of stem)
- Contact wire (goes into stem)
- Support wires
- Stem (glass mount)
- Contact wire (goes out of stem)
- Cap (sleeve)
- Insulation
- Electrical contact
पहला बिजली का बल्ब 1800ई में हम्फ्री डेवी एक अंग्रेजी वैज्ञानिक द्वारा बनाया गया था. उन्होंने बिजली के साथ प्रयोग किया और एक बिजली बैटरी का आविष्कार किया. जब उन्होंने अपनी बैटरी के साथ कार्बन का एक टुकड़ा तार के साथ जोड़ा,कार्बन का टुकड़ा चमकने लगा और प्रकाश उत्पन्न हुआ,इसको बिजली का आर्क कहा जाने लगा |
बाद में 1860 में,अंग्रेजी भौतिक विज्ञानी सर जोसेफ विल्सन हंस (1828-1914) ने एक व्यावहारिक, लंबे समय तक चलने वाले बिजली की रोशनी का बल्ब बनाने का प्रदर्शन किया,उन्होंने पाया कि एक कार्बन रेशा पेपर अच्छी तरह से काम करेगा लेकिन वह चमकने के साथ जल्दी से जल गया|
1877 में अमेरिकी चार्ल्स फ्रांसिस ब्रश दवारा निर्मित कुछ कार्बन प्रकाश आर्क्स का कुछ सड़कों पर प्रकाश उत्तपन करने के लिए इस्तेमाल किया गया,कुछ बड़े कार्यालय भवनों में और कुछ दुकानों में प्रयोग किया गया परन्तु इस बिजली की रोशनी का लाभ केवल कुछ लोगों को ही हो सका |
1879 में आविष्कारक थॉमस अल्वा एडीसन (यूएसए) ने पता चलाया कि एक ऑक्सीजन मुक्त ग्लास बल्ब में कार्बन फिलामेंट को प्रकाशित किया जाए,परन्तु वह बल्ब भी 40 घंटे के लिए ही जला था, एडीसन ने अंततः एक बल्ब का उत्पादन किया जो 1500 से अधिक घंटे के लिए चमक सकता था
1910 में विलियम डेविड कूलिज (1873-1975) एक टंगस्टन फिलामेंट जो भी पुराने फिलामेंटस से अधिक समय तक तप्त रह के प्रकाश दे सकता था का आविष्कार किया और शुरू हुआ गरमागरम बल्ब दुनिया में क्रान्तिकारी परिवर्तन |
चित्र हिंदी विकी से साभार