मंगलवार, 30 नवंबर 2010

विधुत बल्ब का फिलामेंट क्यूँ नहीं जलता ? Why does not the electric Filament in an electric bulb burn up ?

विधुत बल्ब का फिलामेंट क्यूँ नहीं जलता ?
  विधुत बल्ब में एक स्प्रिंग की तरह की तार होती है जो की लाल तप्त हो जाती है और तब प्रकाश उत्पन्न  होता है यह फिलामेंट कहलाता है वैसे  विधुत बल्ब को बोलचाल की भाषा में बल्ब कह देते है इसका नाम उद्दीप्त दीपक या इन्कैंडिसेंट लैम्प (incandescent lamp) होता है |
जब  इस फिलामेंट तार में विधुत प्रवाहित होती है तो तब यह गरम होकर प्रकश देने लगता है। 
फिलामेंट बनने के लिए उच्च गलनांक वाली धातु की आवश्यकता होती है |
यदि कम गलनांक वाली धातु का प्रयोग कर लिया जाए तो वो पिंघल जाएगी 
टंग्स्टन Tungsten धातु का प्रयोग किया जाता है ,जिसका गलनांक 3140 डीग्री सेंटीग्रेट होता है और जबकि फिलामेंट को चमकने के लिए 2700 डीग्री सेंटीग्रेट तापमान की जरूरत होती है |
फिलामेन्ट को काँच के बल्ब के अन्दर इसलिये रखा जाता है ताकि अतितप्त फिलामेन्ट तक वायुमण्डलीय आक्सीजन न पहुँच पाये और इस तरह क्रिया करके फिलामेन्ट को जला ना सके।
  1. Outline of Glass bulb
  2. Low pressure inert gas (argon, neon, nitrogen)
  3. Tungsten filament
  4. Contact wire (goes out of stem)
  5. Contact wire (goes into stem)
  6. Support wires
  7. Stem (glass mount)
  8. Contact wire (goes out of stem)
  9. Cap (sleeve)
  10. Insulation  
  11. Electrical contact
आओ जाने विधुत बल्ब  के आविष्कार का  इतिहास
पहला बिजली का बल्ब 1800ई में हम्फ्री डेवी एक अंग्रेजी वैज्ञानिक द्वारा बनाया गया था. उन्होंने बिजली के साथ प्रयोग किया और एक बिजली बैटरी का आविष्कार किया. जब उन्होंने अपनी बैटरी के साथ कार्बन का एक टुकड़ा  तार के साथ जोड़ा,कार्बन का टुकड़ा चमकने लगा और प्रकाश उत्पन्न हुआ,इसको बिजली का  आर्क कहा जाने लगा |
बाद में 1860 में,अंग्रेजी भौतिक विज्ञानी सर जोसेफ विल्सन हंस (1828-1914) ने एक व्यावहारिक, लंबे समय तक चलने वाले बिजली की रोशनी का बल्ब बनाने का प्रदर्शन किया,उन्होंने पाया कि एक कार्बन रेशा पेपर अच्छी तरह से काम करेगा लेकिन वह चमकने के साथ जल्दी से जल गया| 
1877 में अमेरिकी चार्ल्स फ्रांसिस ब्रश दवारा निर्मित कुछ कार्बन प्रकाश आर्क्स का कुछ सड़कों पर प्रकाश उत्तपन करने के लिए इस्तेमाल किया गया,कुछ बड़े कार्यालय भवनों में और कुछ दुकानों में प्रयोग किया गया परन्तु इस बिजली की रोशनी का लाभ केवल कुछ लोगों को ही हो सका | 
1879 में आविष्कारक थॉमस अल्वा एडीसन (यूएसए) ने  पता चलाया  कि एक ऑक्सीजन मुक्त ग्लास बल्ब में कार्बन फिलामेंट को प्रकाशित किया जाए,परन्तु वह बल्ब भी 40 घंटे के लिए ही  जला था, एडीसन ने अंततः एक बल्ब का उत्पादन किया जो  1500 से अधिक घंटे के लिए चमक सकता था
1910 में विलियम डेविड कूलिज (1873-1975) एक टंगस्टन फिलामेंट जो भी पुराने फिलामेंटस से अधिक समय तक तप्त रह के प्रकाश दे सकता था का आविष्कार किया और शुरू हुआ गरमागरम बल्ब दुनिया में क्रान्तिकारी परिवर्तन |
चित्र  हिंदी विकी से साभार

बुधवार, 24 नवंबर 2010

क्या होती चेयुइंगम ? What is Chewing Gum?

क्या होती चेयुइंगम ? What is Chewing Gum?
बचपन में किसी से सुना था की चेयुइंगम पशु चर्बी से बनती है परन्तु ये सच नहीं है |
तो फिर होती क्या है चेयुइंगम ?
चेयुइंगम  संयोगवश खोजी  गयी  है वो कैसे उन्नसवी सदी के 1869 ई. में रबर के नए नए विकल्पों की खोज तेज़ी से की जा रही थी तभी थामस एडम्स नामक व्यवसायी सापोडीला(Manilkara zapota,  Sapodilla) चीकू फल के  पेड़ की गोंद को मुंह में डाल कर चबाया तो उन्हें यह गोंद बहुत ही स्वादिष्ट लगी और उन्होंने विचार किया क्यों न इसको और लोगो तक भी पहुंचाया जाए बस उन्होंने इस गोंद (गम) का पेटेंट(1871) करवाया और 'एडम्स न्युयोर्क गम' गम के नाम से मार्केट में उतरा और बेचना शुरू कर दिया |
इसका चिपचिपा और लिसलिसा सा स्वाद सब को अच्छा लगा,मिठास होने और चबाते ही चले जाने के कारण यह छोटे बड़े सब में बहुत लोकप्रिय हुई | चीकू फल के पेड़ के तने के साथ एक वक्राकार कट बनाने से तने के  अंदर से गाढ़ा सफेद रस निकलता है जिसे छोटे बैग में एकत्र करते हैं कारखाने में इस रस को कॉर्न सिरप, ग्लिसरीन, चीनी फ़ूड कलर और स्वादिष्ट बनाने का मसाला के साथ उबला जाता है तो यह मिक्सचर सूख जाता है इसको फैला कर मनचाहे  आकार के टुकड़ों में काट कर चेयुइंगम बन जाती है|
बाद में इस सापोडीला चेयुइंगम  में बहुत सुधार हुए,डा. सी मैंन ने इस में पैपासीन नाम का एक सुगन्धित  पदार्थ मिला कर इसको बाजार का राजा बना दिया सुगन्धित  पैपासीन युक्त सापोडीला चेयुइंगम ने कीं सालों तक बाज़ार में राज़ किया |
सापोडीला के राज़ के बाद अब चेयुइंगम गुडा सिपैक प्रजाति के पेडों के गोंद  से बनते है       

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

कितने प्रकार का होता है भय ? Types of Phobia

वैसे तो भय कई प्रकार का होता है पर यहाँ पहली किस्त में मुख्य 10 प्रकार पहले प्रस्तुत है|
1.मकड़ियों का विकृत भय (Arachnophobia):
arachnophobia भय की इस प्रकार में मकड़ियों से डर लगता है यहाँ तक की मकड़ियों के चित्र देख कर भी डर लगता है ये लगता रहता है उसके कपडो में या फिर उसके आसपास मकड़ी है






2.समाज का भय (Social Phobia ):
social anxiety
इस प्रकार के भय में व्यक्ति को समाज और लोगो से डर लगा रहता है उदाहरण के तौर पर एक विद्यार्थी पहले दिन कक्षा में नहीं जाता की प्रोफेसर जी उस को सब के सामने अपना परिचय देने को कहेगे|social anxiety occurring only in specific situations, such as a fear of public speaking.

 



3.उड़ान का भय (Aerophobia):
air इस प्रकार के भय में उड़ान ,हवाई ज़हाज़ का सफर आदि स्तिथीयां आती है Aerophobia is a term used to describe an irrational fear of breezes, fresh air, flying or any association with flights and flying.   



 


4.एक सीमित स्थान में बंद किये जाने का भय (Claustrophobia):
Claustrophobia
इसमें ये डर लगा रहता है कि वो एक सिमित जगह पर बंद है या बंद जगहों पर जाने से डर जाता है जैसे लिफ्ट या फिर स्केन मशीनों में जाने का भय 
Claustrophobia is an anxiety disorder in which someone has an intense and irrational fear of confined or enclosed spaces.





5.ऊँचाईयों से भय (Acrophobia):
fear of high
 ऊँची जगहों पर जाने का डर  An abnormal fear of high places.





  


6.उलटी आ जाने का भय (Emetophobia):
emetophobia
इसमें ये भय रहता है की उसको बदबू से सफर में या कही जाने से उलटी आ जाएगी Emetophobia is an intense, irrational fear or anxiety pertaining to vomiting.







7.भीड़ या खाली जगहों का भय (Agoraphobia):
Agoraphobia
अधिक भीड़ वाली जगह या फिर सुनसान जगह पर जाने का भय,a morbid fear of open spaces (as fear of being caught alone in some public place).



   


8.कैंसर हो जाने का डर (Carcinophobia):
carcinophobia
सदा ये डर बना रहता है की उसको कैंसर है या हो जाएगा Carcinophobia, the fear of cancer, is among the most widespread phobias, and it is not hard to imagine why.



 



9.बवंडर,तड़ित का भय  (Brontophobia):

Brontophobia
इस प्रकार में सदा बवंडर,तड़ित का डर बना रहता है वर्ष में जाने से भी डर लगता है Brontophobia is better known as fear of lightning and thunder.




  



10.मर जाने का भय (Necrophobia):
Necrophobia
जबकि पता है की सब ने एक दिन मर जाना है फिर भी हर समय ये भय लगा रहना की की मै मरने वाला हूँ या मर जाऊँगा,मृत को देखने का डर Necrophobia, is also known as Fear of Death and Fear of Dead Things. It is a surprisingly common phobia.






सभी चित्र गूगल इमेज से लिए गए है| 

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

क्या मछलियाँ भी सूँघ सकती है? Can fish smell?

जैसे हम गंध को नाक से सूंघ लेते है क्या मछलियाँ भी सूँघ सकती है?
ये प्रश्न अक्सर सोचने पर मजबूर कर देता होगा मछलियाँ तो पानी के अंदर रहती है और गिल्ज़(गल्फडो) से सांस लेती है और पानी में तो हवा भी नहीं चल रही होती फिर मछलियाँ पानी के भीतर गंध का अनुभव कैसे कर लेती होंगी?
इस प्रश्न जानने के लिए पहले ये जानना जरूरी है कि मछली की शारीरिक बनावट कैसी होती है और क्या उस की नाक भी होती है?
nostrils-1
 nostrils मछली के नथुने होते है  मछली की नाक ऊपर सिर पर दो  खुलने वाले नथुने से बनी है प्रत्येक नथुने में छिद्र होते है दो जोड़ी नथुने के बीच में एक फ्लैप होता है जो इन छिद्रों को अलग अलग करता है वैसे अलग अलग प्रजाति की अलग अलग बनावट होती है यानी अंतर,नाक के भीतर अनगिनत कोशिकाएं होती है पानी एक नथुने से भीतर जाता है और इन कोशिकाओं को छूता है इन कोशिकाओं के संवेदी रिसेप्टर्स गंध को पहचान कर मस्तिष्क को सूचना प्रदान करते है|
यहाँ एक बात काबिले गौर है कि मछली के नथुने यानी नाक उसके श्वशन तन्त्र Respiratory System के हिस्से नहीं है|मछली का श्वशन तन्त्र  भी जटिल व्यवस्था है चलो जान ही लेते है ये भी
fish_system  पानी मुख से अंदर जाता है और गिल्ज़ से होता हुआ बाहर आ जाता है gills_2     
गिल्ज़ में पानी में घुलनशील आक्सीजन पतली झीळली वाली रक्त नलिकाओं में से रक्त के साथ जा मिलती है और ह्रदय की कार्य प्रणाली से सारे शरीर में पहुँच जाता है |                                             gills  
मछलियों को सूघने के लाभ:  
1- इनको भोजन की तलाश में मदद मिलती है|
2- इस से इनको खतरे भापने में मदद मिलती है |
3- इनको अपने आश्रय या कह लो घर तक पहुचने में मदद मिलती है |
4- ये इस गुण से दो पानियों का अंतर तक पहचान जाती है |
5- खतरे की चेतावनी देने के काम भी आता है यह गुण|
नोट :सभी चित्र गूगल इमेज से साभार

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

पक्षी बिजली की तारों पर बिना विधुत झटका लगे कैसे बैठ जाते है? How do Birds sits on electric lines?

electric-shock-2

कई बार  हम ये सोचते है कि पक्षी बिजली की तारों पर बिना विधुत झटका लगे कैसे बैठ जाते है आम तौर पर बिजली के खंभोंवाली तारों पर हम पक्षी जैसे कौवों,कबूतरों,चिडियों आदि पक्षियों को तारों पर बैठे देखते है और सोचते है इन को करंट या बिजली का झटका ( Electric shock) क्यूँ नहीं लगता है|

electric-shock-1

   इसको जानने के लिए हमे ये जानना जरूरी हो जाता है की ये बिजली का झटका ( Electric shock) होता क्या है उच्च वोल्टेज लाइनों के साथ संपर्क में आने से शरीर के माध्यम से विद्युत धारा के प्रवाहित हो जाने पर एक ज़बरदस्त अभिघात होता है जिस के फलस्वरूप जल जाना और ह्रदय की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है इस स्थिति में मृत्यु हो जाती है|

जीवों का शरीर विधुत का सुचालक होता है  जब एक पक्षी एक बिजली लाइन पर खड़ा है वह एक ही कंडक्टर से जुड़ा है तो उस के शरीर से विधुतधारा का प्रवाह नहीं होगा परन्तु जैसे ही वो दुसरी तार को छुयेगा तो विधुत परिपथ पूरा हो जाएगा और पक्षी के शरीर से उच्च वोल्टता का प्रवाह होने से जल जाना या फिर ह्रदयगति रुक जाना सम्म्पन होगा और उस की तत्काल मृत्यु हो जायेगी 

हाक, ईगल, और अन्य बड़े पक्षी हजारोंकी संख्या में बिजली लाइनों से उलझ कर करंट लगने से electrocution से हर साल मर जाते हैं|

electric-shock-3

   Only when the bird completes a circuit, either by touching two lines simultaneously,or by touching a line and a ground source (say, a metal pole that is anchored into the ground), will the electic current change its path and pass through the bird on its way to the alternative path (the other wire or the metal pole).
or When a bird sits on an electric line, there is no circuit completed. Bird sits on the same side of the circuit. If he were to sit on two wires (or one wire and a ground source) at the same time, an electrical circuit would be completed, and the resulting surge of current through his body would electrocute him.

तो अब समझ चुके होंगे कि क्यों और कब तक पक्षी इन पावर की तारों पर बैठ सकते है जी

सभी चित्र गूगल इमेज से साभार

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

क्या होता है इन्द्रधनुष What is a Rainbow ?

इन्द्रधनुष Rainbow यह एक बहुत ही सुंदर प्रकाशीय विक्षेपण की धटना है जिसे न समझ पाने के कारण इसे पुराने समय में इन्द्रधनुष,रेनबो,बुढीया का बेड़ा,मेघधनुष आदि नामों से जाना जाता रहा है|

rainbow-1 आओ जाने वास्तव में इन्द्रधनुष Rainbow होता क्या है ?

ये जानने के लिए पहले जाना जायेगा

  प्रकाश का विक्षेपण dispersion of light through prism: सूर्य के rainbow-2 प्रकाश की  कोई किरण जब प्रिज्म में से गुजरती है तो वो सात रंगों में विभक्त्त हो जाती है क्यूंकि सूर्य का प्रकाश सात रंगों से मिल कर बना होता है

ये सात रंग है                                    

बैनीआहपीनाला=बैंगनी,नीला,आसमानी,हरा,पीला,नारंगी,लाल

VIBGYOR=Violet,Indigo,Blue,Green,Yellow,Orange,Red 

  • जब सूर्य का प्रकाश प्रिज्म से होकर गुजरता है, तो वह अपवर्तन के पश्चात् प्रिज्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ विभिन्न रंगों के प्रकाश में बँट जाता है। इस प्रकार से प्राप्त रंगों के समूह को वर्णक्रम कहते हैं तथा श्वेत प्रकाश का अपने अवयवी रंगों में विभक्त होने की क्रिया को वर्ण विक्षेपण कहते हैं।
  • सूर्य के प्रकाश से प्राप्त रंगों में बैंगनी रंग का विक्षेपण सबसे अधिक एवं लाल रंग का विक्षेपण सबसे कम होता है।
  • न्यूटन ने 1666 ई. में पाया कि भिन्न-भिन्न रंग भिन्न-भिन्न कोणों से विक्षेपित होते हैं।
  • वर्ण-विक्षेपण किसी पारदर्शी पदार्थ में भिन्न-भिन्न रंगों के प्रकाश के भिन्न-भिन्न वेग होने के कारण होता है। अतः किसी पदार्थ का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न होता हैं

    वर्षा  के ठीक बाद बादलों में पानी की छोटी छोटी बूंदें रह जाती है जो कि प्रिज्म की भांति व्यवहार करती है जिन से प्रकाश विक्षेपित dispersion of light  हो कर रंगों की एक पट्टी बनाता है जिसे वर्णक्रम स्पेक्ट्रम Spectrum कहते है इसी को इन्द्रधनुष के नाम से जाना जाता है|  rainbow-3

    चित्र गूगल इमेज से साभार

  • रविवार, 31 अक्तूबर 2010

    क्यों लगता है हैण्डपम्प का पानी सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा The water from a tube well or a hand pump appears to be cold in summer and ....

    क्यों लगता है हैण्डपम्प का पानी सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा ? Why is  water from a tube well or a hand pump Warm in winters
    and cold in summer?

    एक बच्चे ने मुझ से एक प्रश्न पूछा कि खेत के ट्यूब-वेळ यानी नलकूप का पानी सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा हो जाता है ऐसा क्यूँ और कैसे होता है ?




    ठीक यही प्रश्न और विद्यार्थीयों के भी थे कई  अपने नलके (hand pump) को भी चमत्कारी बता रहे थे 
    एक बच्चे ने कहा सर जब  हम गर्मियों में दो -तीन मिनट अपने नलके को चला लेते है तो उस में से बहुत ही ठंडा पानी निकलता है 
    और जब जब  हमर्दियों में दो -तीन मिनट अपने नलके को चला लेते है तो उस के बाद उस में से बहुत ही गर्म  पानी निकलता है  
     सब की यह जानने की इच्छा थी |
    उत्तर ये है कि सर्दियों में बाहर का तापमान नल से निकले पानी के तापमान से कम होता है और गर्मियों में बाहर का तापमान नल से निकले पानी के तापमान से ज्यादा होता है इस तापान्तर के कारण ही हमे  लगता है हैण्डपम्प का पानी सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा
    In Winter ,the outside temperature is lower than that the water flowing out of the pump,and therefore,the water is warm. where as in summer,the outside temperature is higher than the temperature the pump,and therefore,it feels cold.         
     एक उदाहरण के द्वारा यह समझाया गया कि 
    माना सभी मौसम में 80-120 फीट बोरिंग वाले भूमिगत जल स्रोत का तापमान = 25 डिग्री सेल्सियस  
    और माना गर्मियों का दिन का अधिकतम  तापमान = 35 डिग्री सेल्सियस
     और माना सर्दियों का दिन का न्यूनतम/अधिकतम तापमान =12 से 20 डिग्री सेल्सियस
    तो अब इस स्थिति में दोनों बार तापमान में लगभग 10-12 डिग्री सेल्सियस का अंतर रहा 
    इतना अंतर काफी होता है 
    ताप में ठंडा गर्म महसूस करने के लिए  |
    हमने एक प्रयोग भी किया,
    एक बीकर में ठंडा फ्रीज़ का पानी लिया 
    दूसरे बीकर में ताज़ा पानी लिया 
    दोनों के तापमान में अंतर = 15 डिग्री सेल्सियस
    पहले ठन्डे पानी में हाथ डुबो कर रखा 
    फिर वो ही हाथ ताज़े पानी में डाला तो ताज़ा पानी गर्म लगा 
    और समझ गए सब अब इस चमत्कार का रहस्य 
    नोट :-हमें सर्दियों  में ताज़े (यानी टैंकी के नहीं) पानी से नहाना चाहिए
    नोट :- सुझावों का स्वागत है 
    सुझावों और लेख मे सुधारों को लेख मे शामिल कर लिया जाएगा | 
    सभी चित्र लेख को  और रुचिकर बनाने के लिए गूगल इमेज से लिए गए(साभार)है
       
      
       

    शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

    क्या कारण है रंग बदल लेने का गिरगिट के ? How do chameleons change colours?

    क्या कारण है रंग बदल लेने का गिरगिट के ?  How do chameleons change colours?
    हम अक्सर सुनते/पढते है कि गिरगिट की तरह रंग बदल गए तुम तो या वो तो गिरगिट से भी तेज रंग बदलता है जी । क्या तुमने कभी सोचा है कि रंग बदलने के पीछे गिरगिट का ही नाम क्यों लिया जाता है। क्या गिरगिट के भीतर रंगों का भण्डार होता है, जो जरूरत के अनुसार कपड़ों की तरह उनका इस्तेमाल करता है कि अपने शत्रु को भांपते ही वह अपना रंग बदल लेता है, जिससे वे अपने दुश्मन की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब हो जाता है।

    दरअसल इस प्राणी की त्वचा में एक विशेष गुण होता है। वह गुण होता है उसकी विशेष प्रकार की कोशिकाएं यानी सैल क्रोमाटाफोरस("क्रोमा -टो-फ़ोर्स" क्रोमा शब्द का अर्थ रंग होता है ).
    ये सैल क्रोमाटाफोरस दिमाग द्वारा नियंत्रित होती है जब दिमाग यानी मस्तिष्क को संदेश जाता है गिरगिट का दिमाग इन कोशाओं को संकेत भेजता है ,ख़तरा भांप कर ,कोशायें इसी के अनुरूप फैलने सिकुड़ने लगतीं हैं तो ये सैल क्रोमाटाफोरस आपना आकार बदल कर छोटी या बड़ी हो जाती  है
     और पिगमेंट यानि कि रंजक के कारण गिरगिट का रंग बदल जाता है
    और वो चारों तरफ के रंग मे घुल मिल कर अपने प्राकृतिक शत्रुओं से अपनी रक्षा कर लेती है
    या फिर अपने शिकार को पकड़ने के लिए पत्तों का या स्थानीय रंग धारण करती है   और एक और कारण से भी जैसे  टेम्परेचर के कम या ज्यादा होने पर उसकी त्वचा में उसका असर दिखाई देने लगता है। इसके शरीर से विशेष प्रकार के हार्मोन के निकलने से कोशिकाएं उत्तेजित होने लगती हैं।
    गिरगिट की त्वचा में ऊपर से नीचे पीली, भूरी, काली और सफेद रंग के रंजको से भरी कोशिकाएं होती हैं। इंटरमेडिन, एसीटिलकोलिन व एड्रीनेलिन नाम के हार्मोन ही उन कोशिकाओं को उतेजित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। माना जाता है कि पेड़ पर चढ़ने वाले गिरगिट ही अधिक रंग बदलते हैं। और तुम्हें जान कर हैरानी होगी कि वे पेड़-पौधों के वातावरण के अनुसार खुद को ढाल लेते हैं और उसी के अनुसार रंग बदलने में देर नहीं लगाते।
    दिलचस्प तथ्य गिरगिट के बारे मे:गिरगिट अकेलापन पसंद करते हैं
    जब एक गिरगिट एक शिकारी के समक्ष पड जाता है तो वह अपने पीले धारियों के साथ लाल रंग बदल जाता है जब गिरगिट बीमार होता हैतो उसका रंग पीला हो जाता है क्योंकि अब उस मे रंग बदलने के लिए  ऊर्जा कम होती है

    नोट :- सुझावों का स्वागत है
    सुझावों और लेख मे सुधारों को लेख मे शामिल कर लिया जाएगा |
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    शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

    क्या होता है इंटरनेट ? What is Internet ?

    क्या होता है इंटरनेट ? What is Internet ?
    आज इन्टरनेट का नाम सभी जानते है, ये नाम हमारे लिए नया नहीं रह गया है! आज ये हमारे जीवन का एक हिस्सा बन चुका है! इन्टरनेट से हमारा जीवन कितना सरल हो गया है!
    लेकिन सवाल ये उठता है कि इन्टरनेट कहते किसे है?
    सूचनाओ और दस्तावेजों के आदान-प्रदान के लिए टी सी पी /आई पी प्रोटोकॉल का उपयोग कर के बनाया गया नेटवर्क जो वर्ल्ड वाइड नेटवर्क के सिद्धांत पर कार्य करता है उसे इन्टरनेट कहते है!
    टी सी पी का अर्थ है ट्रांस्मिस्अन कण्ट्रोल प्रोटोकॉल
    आई पी का अर्थ है इन्टरनेट प्रोटोकॉल
    इन्टरनेट कनेक्शन के प्रकार............
    १. अनालोग/ डायल उप
    २. आई एस डी एन
    ३. बी आई एस डी एन
    ४. डी एस एल
    ५. केबल
    ६. वायरलेस इन्टरनेट कनेक्शन/ ब्रोड्बैंड
    ७. टी १ लाइन
    ८. टी ३ लाइन
    जिस तरह हर सिक्के के दो पहलु होते है उसी तरह इन्टरनेट के भी है!
    इसके कई फायदे और नुकसान भी है! अब ये निर्भर करता है इसका उपयोग करने वाले पर की वो अपने अंदर के इंसान को जगाता है या फिर शैतान को.................सबसे पहले हम इन्टरनेट से होने वाले फायदे के बारे में बात करते है!
    इन्टरनेट से फायदे:
    • कमुनिकेशन - इन्टरनेट के द्वारा हम काफी दूर बैठे व्यक्ति से बिना किसी अतिरिक शुल्क के घंटो तक बात कर सकते है! सूचनाओ के आदान प्रदान के लिए इ-मेल कर सकते है!
    • जानकारी - किसी भी तरह की जानकारी हम सर्च इंजन के द्वारा कुछ पल में प्राप्त कर सकते है!
    • मनोरंजन - ये हमारी बोरियत खतम करने का सबसे अच्छा माध्यम बनकर उभरा है! संगीत प्रेमियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, संगीत, गेम्स,फिल्म इत्यादि बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के डाऊनलोड कर सकते है!
    • सर्विसिंगइन्टरनेट पर कई तरह की सुविधाए है जैसे कि आनलाइन बैंकिंग, नौकरी खोज,
    रेलवे टिकट बुकिंग, होटल रिजर्वेशन इत्यादि सुविधायें घर बैठे मिल जाती है!
    • इ-कामर्स- ये सुविधा बिसिनेस डील और सूचनाओं के आदान-प्रदान से सम्बंधित है!
    • शोसल नेटवर्किंग साईट- आजकल इसका चलन बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है! सेलिब्रिटीस तक इसका अपनी बातों को सभी तक पहुचने के लिए जमकर उपयोग कर रहे है! इसके कई फायदे है! अलग अलग विचारों वाले दोस्त बनते है, जिनसे काफी कुछ सीखने को मिलता है! ये साईट काफी मात्रा में पठनीय सामग्री तक रखे हैं! आज ये अपनी बात दूसरों के सामने रखने का सबसे अच्छा साधन बन रहा है!
    इन्टरनेट से नुक्सान:
    • व्यक्तिगत जानकारी की चोरी- व्यक्तिगत इन्फर्मेशन की चोरी के कई मामले सामने आये है जैसे की क्रेडिट कार्ड नम्बर, बैंक कार्ड नम्बर इत्यादि की चोरी! इसका उपयोग देश की सुरक्ष्हा व्यवस्था को भेदने के लिए भी किया जाता है
    • स्पामिंग- ये अवांछनीय ई-मेल होती है जिनका मकसद गोपनीय दस्तावेजों की चोरी करना होता है!
    • वायरस- इनका उपयोग कंप्यूटर की कार्य प्रणाली को नुक्सान पहुचाने के लिए किया जाता है!
    • पोरोनोग्रफी- ये इन्टरनेट मे जहर की तरह है! जिसमे कई लोग समाते चले जाते है! इस तरह की साईट पर ढेरो अश्लील सामग्री रहती है,जिनको देखकर लोग बर्बादी की तरफ अग्रसर हो रहे है और इस तरह का व्यपार चलाने वाले अच्छी आमदनी कर रहे है! ये हमारे समाज में जहर की तरह घुल रहा है! बच्चे इसको देखकर बर्बाद हो रहे है जिससे वो कई तरह के अपराध कर डालते है छोटी सी उम्र में ही जिसका परिणाम बेहद ही खतरनाक होता है! इसे रोकने के लिए सख्त नियम बनने चाहिए!
    • पाइरेसी- इससे काफी नुकसान हो रहा है आई.टी. जगत और फिल्म नगरी को! कोई भी सॉफ्टवेर या  मूवी हो इस पर बिना कोई कीमत दिए मुफ्त में मिल जाता है, तो फिर कोई पैसे क्यों लगाये, ये तभी रुक सकता है जब सरकारें ऐसी वेबसाइटस पर ही पाबन्दी लगा दे अन्यथा ये कभी रुकने वाली नहीं है!
    " जिस प्रकार सागर मंथन से विष और अमृत दोनों निकले थे, ठीक उसी प्रकार इन्टरनेट पर भी ये दोनों ही है, अब ये उपयोगकर्ता पर निर्भर करता है की वो क्या लेता है विष या अमृत! इन्टरनेट से अगर आप बन सकते है तो बिगड भी सकते है! जिस तरह एक सिक्के के दो पहलु होते है उसी तरह इन्टरनेट के भी है इसलिए अच्छा वाला ग्रहण किया जाये और बुरा वाला त्याग किया जाये, ये हमारे और हमारे देश दोनों के लिए अच्छा है! ’’
    लेख: महिंद्र गौर,दर्शन लाल बवेजा  
    चित्र गूगल इमेज से साभार 

    शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

    क्या होता है बवंडर ? what is Tornado?

    क्या होता है बवंडर ? what is Tornado?
    बवंडर(Tornado) एक विनाशकारी चक्रवातीय,खतरनाक हवा का घूर्णन स्तंभ है यह एक पाईपनुमा हवा का घूर्णन स्तंभ है जो  की पृथ्वी और तूफानी बादलों(cumulonimbus,क्यूम्यलोनिम्बस) के सम्पर्क से बनता है व कई बार मेघपुंज बादल cumulus cloud और आधार(पृथ्वी) के साथ संपर्क में भी बनता देखा गया है|

    "आमतौर पर बवंडर को अमेरिका के कुछ निश्चित क्षेत्रों में देखा जाता है। यह भारत में भी कभी कभार नजर आ जाता है|  बवंडर हवा के भारी दबाव और बादलों के कई तह से बनता है। पानी/धूल मिटटी  की धारनुमा लकीर आसमान से बनती है और जमीन पर से पानी/धूल मिटटी  ऊपर की तरफ खींचती है।"



    यदि  टोर्नाडो की संकीर्ण सिरे की तरफ कोई पानी का तालाब,झील या नदी आ जाये तो पानी ऊपर खिचने लगता है और आस पास बूंदों के रूप मे बरसने भी लगता है |
     बवंडर कई आकारों में आते हैं लेकिन कीप के रूप का जिसका संकीर्ण अंत  पृथ्वी छूता है और वृहद अंत मलबे और धूल से भरा बादल की तरफ होता है|
    ज्यादातर बवंडर(Tornado) की पवन गति 40 मील प्रति घंटा(64 किमी/घ) और 110 मील प्रति घंटा(177किमी/घ),औरचोड़ाई250 फीट(75 मीटर) के लगभग होती है| बवंडर बनने के बाद खत्म होने से पहले कई किलोमीटर तक चलता है |
    हालांकि बवंडर tornadoes अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर आते है ज्यादातर संयुक्त राज्य अमेरिका में होते हैं इसके अलावा दक्षिणी कनाडा,दक्षिण मध्य और पूर्वी एशिया, पूर्वी मध्य दक्षिण अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, उत्तर पश्चिमी और दक्षिण पूर्वी यूरोप, पश्चिमी और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड मे आते है |
    यू ट्युब से बवंडर का एक असली वीडियो आप के लिए है देखे, 

    बवंडर की वजह से टनों उपजाऊ मिट्टी भी उड़ जाती है |
    अभी  कुछ दिन पहले मैंने दैनिक भास्कर अखबार मे खबर पढ़ी थी 
    अमेरिका में एक भयानक बवंडर ने एक पूरे के पूरे घर को ही जमीन से उखाड़ कर 50 फिट दूर फेंक दिया। अच्छी बात यह रही कि इस घर में रह रहा दंपति बवंडर के समय घर में नहीं था और उनकी जान बच गई।
    मिनेसोटा में रहने वाले बाब और लॉरेल हेंसन को जब घर के दक्षिण में बवंडर के होने की खबर मिली तो उन्होंने शहर के शरणार्थी कैंप में शरण ले ली।
    जब वो घर लौटे तो देखा कि उनका घर अपनी नींव से 50 फिट दूर पड़ा है। कल रात आए इस भयानक तूफान में मिनेसोटा में कम से कम दो लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। इन भयानक बवंडर ने घरों और पेड़ों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया।
    बवंडरों  के आने के कारण :-

    बवंडर(Tornado)तब बनते है जब अलग अलग तापमान और आर्द्रता के दो द्रव्य Masses का निलंब होता है| अगर वातावरण की निचली परते अस्थिर हैं तो गर्म हवा की एक मजबूत उर्ध्व हलचल बनेगी, बवंडर(Tornado)तब भी बनते है जब गर्म हवा एक दिशा से आती है और ठंडी हवा दूसरी दिशा से आती है|
    सूर्य  के ताप से गर्म हवा ऊपर उठती है और ठन्डे बादलों मे जाती है तो तेजी से ऊपर उठती है और घूमने लग जाती है 
    इन  लिंक्स  पर जा कर Next पर क्लिक करने पर आप एक दम जान जायेंगे कि बवंडर(Tornado)कैसे बनता है 
    Play पर क्लिक करो
    एक  दूसरा Animated Tornado देखे
    क्या बचाव के तरीके है ?
    क्या करें जब बवंडर की स्थिति चल रही हो ?
    घर या इमारत के तहखाने मे चले जाएँ|
    बवंडर से बचने के लिए चिमनी और खिड़कियों की तरफ ना जाएँ|
    किसी मजबूत फिक्स फर्नीचर नीचे चले जाओ|
    कार को रोक कर बाहर निकल कर कोई सुरक्षित जगह ढूंढों या फिर जमीन पर लेट जाओ|
    चित्र गूगल इमेज से साभार


    शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

    शहद क्या है ये जाने आज ? What is Honey ?

    शहद क्या है ये जाने आज ? What is Honey ?
    आज  कल आयातित  शहद बहुत चर्चा मे है तो आज शहद के बारे मे ही जाना जाए कि क्या होता है शहद ?honey bee -0
    आज से हजारों वर्ष पहले  से ही दुनिया  के सभी  चिकित्सा शास्त्रों ,धर्मशास्त्रों, वैधों-हकीमों, ने शहद की उपयोगिता व महत्व को बताया है। आयुर्वेद के ऋषियों  ने भी माना है कि तुलसी व मधुमय पंचामृत का सेवन करने से संक्रमण  नहीं होता और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है।
     शहद को शहद की मक्खियां Honey Bee  बनाती है इनका जो घर होता है उस को छत्ता कहते है इन छत्तों मे मधुमक्खियाँ रहती है
              honey bee -2 honey bee -1
    मधुमक्खियों के जीवन की 4अवस्थाये  अंडा ,लार्वा , प्यूपा ,वयस्क मक्खी  होती है |ये मधुमक्खियाँ निम्न  प्रकार की होती है |1.श्रमिक 2.नर 3.रानी
    मधु या शहद एक मीठा, चिपचिपाहट वाला अर्ध तरल पदार्थ होता है जो मधुमक्खियों द्वारा पौधों के पुष्पों में उपस्थित  मकरन्द के कोशों से निकलने वाले  मकरंद जिसे नेक्टर नाम का रस भी कहते है  से तैयार किया जाता है और आहार के रूप में छत्ते की कोठियों मे संग्रह किया जाता है। शहद मैं जो मीठापन होता है वो मुख्यतः ग्लूकोज़ और  फ्रक्टोज शुगर के कारण होता है। शहद का प्रयोग औषधि रूप में भी होता है। शहद में ग्लूकोज व अन्य शर्कराएं तथा विटामिन, खनिज और अमीनो अम्ल भी होता है जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और उतकों के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। प्राचीन काल से ही शहद को एक जीवाणु-रोधी के रूप में जाना जाता रहा है। शहद एक हाइपरस्मॉटिक एजेंट होता है जो घाव से तरल पदार्थ निकाल देता है और शीघ्र उसकी भरपाई भी करता है और उस जगह हानिकारक जीवाणु भी मर जाते हैं। जब इसको सीधे घाव में लगाया जाता है तो यह सीलैंट की तरह कार्य करता है और ऐसे में घाव संक्रमण से बचा रहता है।
    मधुमक्खी के पेट मे एक थैलीनुमा संरचना होती है जो एक वाल्व से जुडी होती है मधुमक्खी फूलों से मकरंद चुस्ती है और इस थैली मे एकत्र करती रहती है और छत्ते मे आकर इस रस को वाल्व के दवारा मधुकोशों मे उगल देती है और मकरंद मे जो पानी होता है वो वाष्पीकरण के द्वारा उड़ जाता है और बाकी पदार्थ रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप शहद मे बदल जाता है |
    honey bee -3
    शहद इकठ्ठा करने के लिए मधुमक्खियों को बहुत ही परिश्रम करना पड़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मधुमक्खियां अपने छत्ते के सभी खानों को महीनों में भर पाती हैं, लेकिन मनुष्‍य है कि देखते-देखते उनके परिश्रम को नष्‍ट करके अपना भला कर लेता है। सचमुच इस क्षेत्र में मनुष्‍य बड़ा ही स्वार्थी व लोभी है।मधुमक्खी के फूलों पर बैठने से परागण जैसी महत्वपूर्ण क्रिया सम्पन्न हो जाती है और मधुमक्खियों को बदले मे मिला मीठा रस जो की वो अपने और अपने बच्चों के लिए सुरक्षित रखती है को ही मनुष्य और अन्य जीव  खाते है शहद मे बहुत से पोषक तत्व होते है जैसे 
    फर्कटोज़ ३८.२%, ग्लूकोज़: ३१.३%,सकरोज़: १.३%,माल्टोज़: ७.१%,जल: १७.२%,उच्च शर्कराएं: १.५%,भस्म: ०.२%,अन्य : ३.२%
    वास्तव  मे शहद मधुमक्खियों के बच्चों और उन का भविष्य का संचित आहार है मनुष्य व जानवरों बंदर और भालू आदि ने शहद को अपने आहार मे शामिल कर लिया है इसे पंजाबी भाषा मे माख्यों भी कहा जाता है यह शहद यदि सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन से गुज़ारे तो हमे इस के अंदर परागकण भी दीखते है शहद के लिए यदि मधुमक्खियाँ गन्ने के रस पर बैठे तो रस से बना शहद सर्दियों मे जम जाता है उस मे शूगर की मात्रा ज्यादा होगी |मधु एक ऊष्मा व ऊर्जा दायक आहार है तथा दूध के साथ मिलाकर यह सम्पूर्ण आहार बन जाता है। इसमें मुख्यतः अवकारक शर्कराएं, कुछ प्रोटीन, विटामिन तथा लवण उपस्थित होते हैं। शहद सभी आयु के लोगों के लिए श्रेष्ठ आहार माना जाता है और रक्त में हीमोग्लोबिन निर्माण में सहायक होता है।एक किलोग्राम शहद से लगभग ५५०० कैलोरी ऊर्जा मिलती है। एक किलोग्राम शहद से प्राप्त ऊर्जा के तुल्य दूसरे प्रकार के खाद्य पदार्थो में ६५ अण्डों, १३ कि.ग्रा. दूध, ८ कि.ग्रा. प्लम, १९ कि.ग्रा. हरे मटर, १३ कि.ग्रा. सेब व २० कि.ग्रा. गाजर के बराबर हो सकता है।
    आजकल चीन से आयातित शहद और मुनाफा कमाने मे अंधी कम्पनीयों के एक घपले को उजागर किया गया है जिसमे सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (C.S.E.)  के शोध के अनुसार बाजार में बिक रहे बड़ी-बड़ी कम्पनीयों के शहद में प्रतीजैवीक एंटी-बायोटिक्स  की मात्रा अंतर्राष्ट्रीय मानकों से दोगुना तक मिली है। ऐसे शहद को अगर लगातार  खाया जाता है तो हमारे शरीर के एंटी बायटिक के प्रति रजीस्ट बनने का खतरा हो जाएगा। और बिना जरूरत के इन प्रतीजैवीक पदार्थों के शरीर मे जाने से जो  साइड इफेक्ट्स होंगे वो भी खतरनाक होंगे | इनके दवारा जांचे गए शहद में एजिथ्रोमाइसिन, सिप्रोफ्लॉक्सेसिन और  ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, क्लोरैंमफेनिकल, एंफीसिलीन आदि प्रतिजैविक पदार्थ पाए गए| यह प्रतीजैवीक शहद मे आते कहाँ से है जब मधु पालन के छत्तों मे इनको बीमारी से बचने के लिए इन प्रतिजैविक  का प्रयोग कियाजाता है तब ये शहद मे आते है ठीक उसी प्रकार जैसे गाय भैंस को बीमार होने पर प्रतिजैविक  का  कोर्स दिया जाता है तो उनके दूध मे भी प्रतिजैविक  का असर आ जाता है इस दूध को पीने  वाले के शरीर मे अनायास ही ये एंटीबायोटिक चले जाते है और हानि करते है |

    आज  श्री प्रकाश गोविन्द जी ने शहद के बारे मे निम्न लिखित प्रश्न पूछे यदि कोई सुधिजन इनका जवाब देना चाहे तो कमेन्ट कर दे उत्तर प्रश्न के साथ प्रकाशित कर दिया जाएगा ताकि और लोगो जी का भी ज्ञान बढ़ सके | 
    मैंने जब शहद के बारे में आपकी पोस्ट देखी तो बालसुलभ कई जिज्ञाशाएं थीं ...जैसे :
    १-  जो लोग शहद के लिए मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं उन्हें मधुमक्खी क्यों नहीं काटती ?

    Ankit.....................the real scholar ने कहा…  
    जो लोग मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं 
    वह  शहद निकलते हुए विशेष कपडे पहनते हैं 
    जिसके कारण मधुमक्खी उनको काट नहीं पाती हैं
    इसी  समय में शायद पालनकर्ता उनके स्वभाव  को जनता है
    तथा कोई ऐसा काम ही नहीं करता है
    की मधुमक्खी को काटने की जरूरत पड़े |
    २- रानी मधुमक्खी क्या होती है ? क्या लोगों का कहना सही है कि अगर रानी मधुमक्खी को पकड़ लो तो कोई मधुमक्खी नहीं काटेगी ?

    उत्तर : रानी मधुमक्खी आकार मे सबसे बड़ी होती है एक छत्ते मे एक ही या ज्यादा होती है ये अंडे देती है जिन अण्डों को नर निषेचित करते है यदि रानी मधुमक्खी को पकड़ ले तो शाही सैनिक और श्रमिक मक्खियाँ आक्रमण कर देंगी परन्तु  छत्ते मे रानी मधुमक्खी को ढूँढना आसान काम नहीं है|  



    ३- शुद्ध शहद कैसा होता है ?  शुद्ध शहद की पहचान कैसे कर सकते हैं ?
    उत्तर : शुद्ध शहद को जब धार बना कर छोड़ा जाता है तो वह सांप की तरह कुंडली बना कर गिरता है जबकि नकली फ़ैल जाता है  | 
    and 
    Add a tablespoon of honey into the water. If the honey is impure, it will dissolve in the water at top layer - the most common additive to honey is syrup of jaggery, which dissolves.
    If it is pure, the honey will stick together and sink as a solid lump to the bottom of the glass.
      

     
    ४- मधुमक्खी के एक छत्ते में कितना शहद निकलता है  और पूरा भरा हुआ छत्ता कितने दिन में बन जाता है ?

    उत्तर: प्राकृतिक छत्ते का तो पता नही,लेकिन मैंने एक मधुमक्खी पालक से पूछा तो उस ने बताया की यह दो बातों पर निर्भर करता है 
    1.फूलों की उपलब्धता पर,वर्ष के सभी महीनों मे फूलों की उपलब्धता एक समान नहीं होती है|
    2.मौसम  की अनुकूलिता पर,अनुकूल मौसम यानी उस स्थान का जहां  मधुमक्खी पाली गयी है |
    वैसे उस ने बताया की यहाँ जहां उस ने पाली है वहाँ वह  साल मे ३-३ महीनों मे दो बार यील्ड लेता है |   
    ५- क्या आँखों के लिए शहद बेहद लाभदायक होता है ? ...रामदेव जी तो यही कहते हैं !

    उत्तर : नहीं एलोपेथिक डाक्टर नहीं मानते मैंने पूछा है |
    साभार : नवभारत टाइम्स,विकिपीडिया,गूगल इमेज
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    बुधवार, 29 सितंबर 2010

    हमारे बाल सफेद क्यूँ हो जाते है ? Why Hair Become White ?

    हमारे बाल सफेद क्यूँ हो जाते है ? Why  Hair  Become White ?
    hairs
    हालांकि बालों का सफेद होना मनुष्यों  के अनुभवी होने का प्रतीक माना जाता है, लेकिन अधुनिक समय में मनुष्य  इसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करते।
    हमारे बालों का रंग काला मेलानिन पिगमेंट Melanin Pigment के कारण होता है यह पिगमेंट चमड़ी के अंदर जहाँ बाल का अंदरूनी भाग होता है जिसे बाल कूप या पुटक (follicle) कहते हैं मे होता है | मेलानिन पिगमेंट वर्णक के कारण बालों मे रंग होता है
    वर्णकों के कारण बाल काला, भूरा, या लाल हो सकता है। यह वर्णक वल्कुट की कोशिकाओं में निक्षिप्त होता है। बाल क्यों सफेद हो जाता है, इसका सही कारण ज्ञात नहीं है। यह संभव है कि उम्र के बढ़ने, रुग्णता, चिंता, शोक, आघात, और कुछ विटामिनों की कमी से ऐसा होता हो। डाक्टरों का मत है बाल का सफेद होना वंशागत होता है।
     
    hair-2        hair-3
     
    hair-4
    बालों रंग काला मेलानिन के कारण होता  हैं, जो हमारी त्वचा के पिगमेंट में होता है। जिनके बालों का रंग हल्का काला  होता है उनमें मेलानिन की कमी होती है। आप देखते हो न कि बड़े लोगों के बाल सफेद या ग्रे हो जाते हैं, असल में उनमें मेलानिन पिगमेंट खत्म हो जाता है, इसलिए उनके बाल सफेद हो जाते हैं। बालों का रंग अक्सर त्वचा के रंग पर निर्भर करता है। अगर आपका रंग फेयर है तो बालों का रंग सुनहरा होगा और अगर आप सांवले हैं तो बालों का रंग काला होगा। ज्यादातर देखा जाता है कि बच्चों के बालों का रंग उनके माता-पिता से विरासत में मिलता है।
    परन्तु बहुत से चिकित्सकों का मानना है कि बालों की सफेदी वैसे तो जैनेटिक यानी अनुवांशिक होती है। किंतु फिर भी कुछ ऐसे कारण है जो समय से पहले बालों को सफेद बनाने में अहम भूमिका अदा करते है। इनमें न केवल दवा बल्कि अनीमिया, थाइराइड व एचआइवी-एड्स भी शामिल है। खाने में प्रोटीन व आयरन की कमी भी बालों की सफेदी का एक कारण है।
    एक अन्य तरीके से भी समझाया जा सकता है बालों का सफेद होना जीन पर निर्भर है। कई बार जीन का प्रभाव पूरा नहीं होता। इस कारण बाल या तो कम सफेद या सफेद होते ही नहीं। किंतु जब जीन का प्रभाव होता है तो बाल सफेद हो जाते है। दूसरा मुख्य कारण थाइराइड ग्लैड है। युवाओं के शरीर में इस ग्रंथी (ग्लैड) की स्राव कमी या अधिकता बालों को सफेद बना देती है। दवाएं भी बालों की सफेदी के कारणों में से एक है। एक रिपोर्ट के मुताबिक एंटी मलेरिया दवा के प्रयोग से बाल समय से पहले सफेद हो जाते है। खाने में प्रोटीन या आयरन की कमी व विटामिन बी-12 की कमी से भी बाल सफेद हो जाते है। यंग ऐज में जैनेटिक एग्जिमा के कारण तथा आजकल एचआईवी व एड्स पीड़ितों में भी यह समस्या देखी जा रही है। परनीसियस अनीमिया से ब्लड बनाने वाले सेल बिगाड़ने के कारण भी कम उम्र में बाल सफेद हो जाते है।
    क्या कोई इलाज़ है कि बालों को सफेद होने से रोका जा सके !
    बालों के असमय सफेद होने की समस्या से बचा सकता है। इसका उपचार है, बशर्ते समय पर सही इलाज लिया जाए। उन्होंने बताया कि सही डाइट इसका सबसे बेहतर उपचार है। इसके अलावा थाइराइड व ब्लड जांच करवाना भी इसके बचाव में शामिल है।चिंता , भय ,तनाव ,सोच ,प्रदूषण से बच कर रहना भी हल हो सकते है
    हेयर डाई से भी बालों का रंग खोना यानि कि सफेद होना बढ़ जाता है |
    चित्र गूगल इमेज से उठाये गए है साभार