मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

क्या है (52768) 1998 ओआर2? What is 52768 asteroid 1998 OR2?


29 अप्रैल को क्षुद्रग्रह टकराने जैसा कुछ नहीं होगा।
आजकल कुछ ऐसी अफवाहें व आशंकायें  व्यक्त की जा रही हैं कि 29 अप्रैल
2020 को पृथ्वी से एक क्षुद्रग्रह टकराएगा जिससे पृथ्वी  पर जीवन समाप्त हो जाएगा।  शौकिया खगोलविद व विश्व भर की वेधशालाओं में अंतरिक्ष वैज्ञानिक  हमेशा अंतरिक्ष का अवलोकन करते रहते हैं। जिससे वह सौरमंडल में गति कर रहे असंख्य क्षुद्रग्रहों, पुच्छल तारों व अन्य आकाशिय हलचल पर निरन्तर नजर रखते हैं।  मंगल ग्रह और बृहस्पति ग्रह  की ग्रहीय कक्षाओं के बीच एक विशाल क्षुद्रग्रह घेरा (ऐस्टरौएड बेल्ट) हमारे सोलर सिस्टम का एक ऐसा क्षेत्र है जिसमे हज़ारों-लाखों क्षुद्रग्रह (ऐस्टरौएड) सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। इस पट्टी में से कुछ बड़े क्षुद्रग्रह कभी कभी बृहस्पति ग्रह की गुरुत्व शक्ति से मार्ग भ्रमित हो जाते हैं जिससे उनका निर्धारित मार्ग प्रभावित होता है। ऐसा ही एक क्षुद्रग्रह है जिसका नाम नाम जिसका नाम नाम (52768) 1998 ओआर2 है कि पृथ्वी से टकराने की संभावना कई वर्षों से लगाई जा रही थी परंतु वैज्ञानिक गणनाओं के अनुसार वह पृथ्वी से 63 लाख किलोमीटर दूरी से गुजरेगा। यह दूरी बहुत लंबी है। ऐसे में इस ग्रह की पृथ्वी से टकराने की कोई संभावना नहीं है। इस शुद्र ग्रह (52768) 1998 ओआर2 की खोज 1998 में हुई थी यह सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में 1344 दिन लगाता है। यह बहुत विशाल है। इसका आकार 1.8 किलोमीटर से 4.1 किलोमीटर है। अंतरिक्ष किसी महानगरीय सड़क जैसा नही होता है कि जिसमे वाहन पास-पास चलते हैं ओर आपस मे भिड़ जाते हैं। आकाशिय पिंडों के बीच लाखों- करोड़ों किलोमीटर की दूरियां होती हैं। मनुष्य सभ्यता के होशहवास में इतने विशाल क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने का कोई रिकॉर्ड नहीं है लेकिन पृथ्वी पर बहुत सी इस तरह की झीलें हैं जो क्रेटर झीलें कहलाती है। अनुमान है कि यह क्षुद्रग्रहों की टक्कर से ही बनी हैं। चंद्रमा की सतह पर भी बहुत से क्रेटर देखने को मिलते हैं जो निश्चित ही क्षुद्रग्रहों के टकराने से बने हैं यदि कोई उल्का (क्षुद्रग्रह के मुकाबले बहुत छोटा) पृथ्वी के वायुमंडल प्रवेश करता भी है तो वह वायुमंडल के साथ घर्षण बल के कारण जलने लगता है और उसका आकार पृथ्वी की सतह पर टकराने तक बहुत छोटा रह जाता है। इन्हें उल्का पिंड कहते हैं। यदि कोई क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराता है तो टक्कर के कारण बहुत मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होगी जिससे कि विशाल भू-कंपन उत्पन्न होगा। परंतु इस क्षुद्रग्रह (52768) 1998 ओआर2 के मामले में ऐसी कोई डरने घबराने वाली बात नहीं है क्योंकि यह पृथ्वी की बहुत दूरी से गुजरेगा। इसलिए 29 अप्रैल की रात चैन से सोना है। अभी फिलहाल पृथ्वी पर करोना वायरस रूपी संकट का हमें डटकर मुकाबला करना है बस उसी के निपटान में अपना योगदान दीजिये।


शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

क्या होता है शूटिंग स्टार/उल्का बौछार? What is Shooting Star/Meteor Shower?


क्या होता है शूटिंग स्टार/उल्का बौछार?What is Shooting Star/Meteor Shower?
आकाश में एक रोशनी की लकीर सभी को आकर्षित करती है। बहुत से लोग बच्चे उसे देख कर मनोकामना पूरी हो जाना मांगते हैं।
असल मे यह अंतरिक्ष से धूल के छोटे-बड़े कण/टुकड़ों के कारण होते हैं जो पृथ्वी की सतह से 65 से 135 किमी ऊपर जलते हैं। क्योंकि वे ऊपरी वायुमंडल में तीव्र गति से डुबकी लगाते हैं।  पृथ्वी सूर्य के चारों ओर 29 किमी/सेकंड की गति से चक्कर लगा रही है और धूल के ये टुकड़े लगभग 40 किमी/सेकंड की गति से यात्रा कर रहे हैं, इसलिए जब वे हमारे वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, तो उनके पास 30 से 70 किमी/सेकंड की संयुक्त गति होती है।
सारः आसमान में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्कापिंड (meteor) और साधारण बोलचाल में 'टूटते तारे' कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं। पर्सिड्स उल्काएं 60 किमी/सेकंड दर की गति में पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती हैं। हम इसे आकाश में प्रकाश की एक लकीर के रूप में देखते हैं। उल्का बौछार तब होता है जब हमारी पृथ्वी (ग्रह) उल्कापिंडों के समूह से होकर गुजरता है। उल्का वर्षा का नामकरण आमतौर पर उस समय के 'आकाश के क्षेत्र' (यानि नक्षत्र) के नाम पर किया जाता है जहां वे उत्पन्न होते हैं।    उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध Perseids पर्शियड़ उल्कापात, जिसे हम 11-12 अगस्त के आस-पास देखते हैं, इसलिए इसका नामकरण इसलिए किया गया है क्योंकि वे नक्षत्र Perseus से आते हैं। ये धूमकेतु Swift-Tuttle की पूंछ की धूल के कारण होते हैं। पर्शियड़ उल्कापात (Perseid Meteor Shower) अर्ध रात्रि के बाद ययाति तारामंडल की ओर यह घटना पृथ्वी के स्विफ्ट टटल धुमकेतु के द्वारा छोड़े मलबे के मध्य गुज़रने के समय होती है। एक घंटे में 60-100 उल्काये देखी जा सकती है।
लगभग 21-22 मार्च को मेरीट्स उल्कापात का नजारा होता है। जिसमें उल्कापात की तरह 20 उल्का प्रति घंटा होती है।
वास्तव में, ऐसे कई अन्य उल्का बौछार भी हैं जो पेरेसिड्स की तरह हमे अच्छी तरह से ज्ञात नहीं हैं।
अन्य उल्का वर्षा
लियोनिड्स (नक्षत्र लियो में एक चमक के साथ उत्पन्न होती है) 18 नवंबर के आसपास होती है। 14 दिसंबर के आसपास जेमिनीड्स (नक्षत्र मिथुन) में होते हैं।
इसके अलावा भूली भटकी उल्कापात तो रोजाना होता हैं।
वर्ष 2020 के महत्त्वपूर्ण उल्कापात :-

4 जनवरी, 2020 क्वाड्रंटिड्स
 22 अप्रैल, 2020 लिरिड्स
 5 मई, 2020 एटा Aquariids
 जुलाई के अंत में, 2020 डेल्टा Aquariids
 12 अगस्त, 2020 पर्सिड्स
 7 अक्टूबर, 2020 ड्रेकोनिड्स
 21 अक्टूबर, 2020 ओरियोनिड्स
 4-5 नवंबर, 2020 साउथ टॉराइड्स
 11-12 नवंबर, 2020 उत्तर टॉरिड्स
 17 नवंबर, 2020 लियोनिड्स
 13-14 दिसंबर, 2020 जेमिनीड्स
 22 दिसंबर, 2020 उर्सिड्स।




रविवार, 28 जनवरी 2018

क्या होता है सुपर ब्लू ब्लड मून? What is Super Moon, Blue Moon, Blood Moon and Lunar Eclipse?

क्या होता है सुपर ब्लू ब्लड मून? What is Super Moon, Blue Moon, Blood Moon and Lunar Eclipse?
'खगोलीय घटनाओं का आनंद लें डरे नही'
खगोलीय घटनाओं का सभी के लिए अपने अपने अपने मतानुसार विशेष महत्व होता है। ज्योतिषी इसे ज्योतिषिय मान्यताओं से जोड़ कर देखता है तो खगोलशास्त्री, विज्ञान शिक्षक, विद्यार्थी व वैज्ञानिक इसे अनुसंधान व ज्ञानार्जन के उद्देश्यों से देखता है।
विद्यार्थियों को समसामयिक खगोलीय घटनाओं से अपडेट रखने व उनको ये खगोलीय घटनाये दिखाने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि वो इससे जुड़े विज्ञान को समझ कर इनसे सम्बंधित काल्पनिक कथाओं व इनसे जुड़े अंधविश्वासों से मुक्त हो सकेंगे। उनकी रुचि अंतरिक्ष व खगोलविज्ञान में बढ़ेगी जिससे वो इस क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने का भी मन बना सकते हैं। क्योंकि विज्ञान की अन्य शाखाओं के मुकाबले खगोलविज्ञान व अंतरिक्ष विज्ञान  मे अभी बहुत सी नई खोजों व अविष्कारों की अपार सम्भावनाएं शेष हैं।
कक्षा पांच में ही बच्चों को पढ़ा दिया जाता है कि जब चंद्रमा पृथ्वी के पीछे उसकी  उपच्छाया व प्रच्छाया में आता है तो सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक नही पहुंच पाता इस कारण चंद्रमा नही दिखाई पड़ता। इस स्थिति को चंद्रग्रहण कहते हैं। चंद्रग्रहण की अवधि कुछ घंटों की होती है। चंद्रग्रहण को, सूर्यग्रहण के विपरीत, आँखों के लिए बिना किसी विशेष सुरक्षा के देखा जा सकता है।
चंद्रमा का अपना प्रकाश नही होता वह सूर्य के प्रकाश से चमकता है।
क्यों है 31 जनवरी 2018 महत्त्वपूर्ण?
खगोलीय घटनाओं ने सदा से ही मनुष्य को आकर्षित किया है। प्राचीन मानव भी हैरत में पड़ जाता था कि रोज एक ही जगह से देखने पर भी चंद्रमा के आकार परिवर्तन क्यों होता है? पूर्ण चंद्र व अमावस्या उसे अचंभित करते थे। निरन्तर अवलोकन व प्रेक्षण से मानव ने चंद्रकलाओं को समझा।
31 जनवरी को चंद्रमा की कईं सारी खगोलीय घटनाएं एक साथ घटित हो रही हैं ऐसा संयोग 35 वर्ष के बाद बन रहा है। 31 जनवरी को चन्द्रग्रहण, सूपर मून, ब्लू मून, ब्लड मून खगोलीय घटनाएं घटित होंगी। ऐसा पहले 30 दिसम्बर 1982 को घटित हुआ था। पृथ्वी के एक स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के लिए खगोलीय घटनाओं की पुनरावृत्ति बहुत लंबे समय बाद होती है इसलिए इन घटनाओं का आनन्द लेना चाहिए न कि इनसे डर कर घर में दुबकना चाहिये।
आओ सुपरमून को जानें।
चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर अपनी दीर्घवृत्ताकार कक्षा में पृथ्वी के चक्कर लगाता है। परिक्रमा पथ दीर्घवृत्ताकार होने के कारण वह एक बार पृथ्वी से अधिकतम दूरी से व एक बार न्यूनतम दूरी से गुजरता है। तो एक समय ऐसा भी आता है जब चंद्रमा पृथ्वी से न्यूनतम दूरी पर स्थित होता है। यदि उस दिन पूर्णिमा भी हो  तो यह परिघटना सुपरमून कहलाती है। ऐसी स्थिति आने पर चंद्रमा उस दिन अन्य पूर्णिमाओं के अपने आकार से 14 प्रतिशत  बढ़ा व 30 प्रतिशत अधिक चमकदार दिखाई देता है। यह स्थिति एस्ट्रो फोटोग्राफर्स के लिए बेहतरीन शॉट्स लेने के लिए उत्तम होती है। सुपरमून शब्द सर्वप्रथम अमेरिकी खगोलविद रिचर्ड नोल द्वारा वर्ष 1979 में प्रयोग किया गया था। सुपरमून कोई आधिकारिक खगोलीय शब्द नहीं है।
' पूर्ण चंद्रमा का अपने परिक्रमा पथ पर पृथ्वी से न्यूनतम दूरी पर होना सुपरमून है।'
आओ जाने क्या हैं ब्लू मून?
वर्ष मास गणना के दो तरीके हैं एक सौर वर्ष व दूसरा चंद्र वर्ष। एक सौर वर्ष के 12 महीनों (365.24 दिन) में 12 चंद्र मास के कुल दिनों (354.36 दिन) से कुछ दिन (5.88 दिन) अधिक होते हैं। इसलिए प्रत्येक 2.7154 वर्ष के अंतराल पर एक मौसम खंड में 3 की बजाय 4 पूर्णिमाएँ पड़ती हैं। इस स्थिति को साधारण शब्दों में कहें तो किसी एक सौर महिने में दो बार चंद्रमा का पूरा निकलना ब्लू मून कहलाता है। इस वर्ष 2 जनवरी को पूर्णिमा थी और अब 31 जनवरी को भी पूर्णिमा है इसलिए 31 जनवरी के पूर्ण चंद्रमा को ब्लू मून नाम दिया गया। खगोल विज्ञान में फार्मर्स अल्मनक द्वारा दी गयी  ब्लू मून की इस परिभाषा को सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है।
'ब्लू मून एक खगोलीय मौसम में एक अतिरिक्त पूर्णिमा के अस्तित्व की घटना को कहते है।'
क्यों कहते हैं ब्लड मून (ताम्र चंद्र) ?
चंद्रोदय के समय चंद्रमा जैसे ही पृथ्वी की छाया में आएगा तो उसका रंग ताम्बे के रंग जैसा (हल्का लाल) प्रतीत होता है। इस स्थिति में अंतरिक्ष मे चंद्रमा पृथ्वी की परछाई क्षेत्र में होता है तो उस तक सूर्य का प्रकाश केवल पृथ्वी के वायुमंडल से होकर पहुंचता है। मात्र क्रिश्चियन मान्यताओं में ही ब्लड मून का जिक्र है।
यह दुर्लभ नजारा लेने का समय व स्थान:
31 जनवरी से एक दिन पहले आप एक जगह निर्धारित करले जहाँ से पूर्वी दिशा में चंद्रमा को अच्छे से देखा जा सके। आपके शहर या गाँव में 31 जनवरी को चंद्रोदय जितने बजे होगा उस समय से पूर्व वहाँ पहुँच जाएं।
यमुनानगर में 31 जनवरी को चंद्रोदय का समय सायं 5 बजकर 21 मिनट है। अगर मौसम ने साथ दिया तो ये ग्रहण 31 जनवरी को 6 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 42 मिनट के बीच नजर आएगा। ये नजारा लेने के लिए खुले मैदान में जाकर क्षितिज के साथ से ही चन्द्रोदय के समय से ही उसे देखना होगा। इसके अवलोकन के लिए किसी विशेष उपकरण की आवश्यकता नही होती है। अवलोकन स्थल के आसपास ऊंचे भवन व पेड़ न हों।
इसे भारत के साथ-साथ इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में भी देखा जायेगा। इसे अमेरिका के अलास्का, हवाई और कनाडा में भी अवलोकित किया जा सकेगा।
दर्शन लाल बवेजा समन्वयक सी वी रमन विज्ञान क्लब यमुनानगर हरियाणा

शनिवार, 6 जनवरी 2018

क्या होता है एम्ब्रास सिंड्रोम? What is Ambras syndrome?

क्या होता है एम्ब्रास सिंड्रोम? What is Ambras syndrome?
दुनिया की एक दुर्लभ त्वचा सम्बंधित रोग का नाम एम्ब्रास सिंड्रोम (Ambras syndrome) है। इस प्रकार के रोगी के शरीर पर बालो की अत्यंत अधिकता होती है। चेहरे, पूरे शरीर के साथ साथ अपवाद रूप हथेलियों, पैरों के तलवों समेत नाक की म्यूकस झिल्ली पर भी बालों की अधिकता होती है। यह बालों की वृद्धि छोटे, नरम व भूरे रंग के बालों के रूप में ही होती है। अधिक बालों से ग्रसित इन मनुष्यों को रीछ/भालू, वॉल्फ बॉय/वॉल्फ गर्ल, मंकी फेस आदि उपनामो से पुकार कर शर्मिंदा किया जाता है। यदाकदा इनके चेहरे व दाँतो जबड़ों की बनावट भी असमान्य होती है।
यह रोग गुणसूत्रीय विकृति के कारण होता है। विश्व मे इस रोग से ग्रसित व्यक्तियों की संख्या बहुत कम है। विश्वव्यापी डेटा की कमी के कारण इसके सही कारणों का पता लगने अभी रहस्य बना हुआ है इस अनुवांशिक रोग की परिवारिक हिस्ट्री के लिए लंबे विश्लेषण व जाँच की आवश्यकता होती हैं। व्यापक डाटाबेस का नितांत अभाव है। लेसर ट्रीटमैंट भी असफल रहता ही इन बालो को हटाने के लिए इसलिए ग्रसित चेहरे के बाल हटाने के लिए शेविंग का ही सहारा लेते हैं। एम्ब्रास सिंड्रोम अन्य प्रकार यानी हार्मोन अनियमतता से उतपन्न बालो की वृद्धि से भिन्न रोग है।
ऐसे पेशेंट को विशेष स्नेह के अभिलाषी होते हैं जबकि इनको विशेष उपनामों से पुकारा जाता है जो कि सही नही है। बैंकाक की गिनीज बुक रिकार्ड होल्डर सबसे अधिक बालो वाली लड़की  सुमात्रा ने अब विवाह किया है इसके लिए उसे शेविंग से अपने चेहरे के बाल हटाने पड़े। इस एम्ब्रोस सिंड्रोम से ग्रसित दुनिया भर में 50 मामले बताए जाते हैं।

शनिवार, 30 दिसंबर 2017

क्या है यह? What is this?

क्या है यह? What is this?
आकाश में यह क्या हुआ है ?
22 दिसम्बर शुक्रवार को, स्पेसएक्स रॉकेट(SpaceX rocket) लॉन्च की यह फोटोजेनिक तस्वीर दक्षिणी कैलिफोर्निया(Southern California) और एरिजोना(Arizona) के कुछ हिस्सों में यह काफी उज्ज्वल रूप में देखा गया। एक विशाल अंतरिक्षीय मछली की तरह दिखते वाला, कैलिफोर्निया के लोमपोक के पास वंडनबर्ग एयर फोर्स बेस(Vandenberg Air Force Base) से प्रभावशाली रॉकेट लॉन्च का है उज्जवलता का कारण उस समय अस्त होता सूर्य इसके विपरीत दिशा में था। फाल्कन 9 रॉकेट के द्वारा सफलतापूर्वक पृथ्वी के निचली कक्षा में 10 इरिडियम नेक्स्ट उपग्रहों(Iridium NEXT satellites) को स्थापित कर दिया गया। यह उपग्रह मुख्यतः विकासशील वैश्विक संचार नेटवर्क(developing global communications network) का हिस्सा हैं। इस उपग्रह प्रक्षेपण के पहले चरण को आप दाईं ओर देख सकते है जबकि ऊपरी भाग में रॉकेट बायीं तरफ शीर्ष पर देखा जा सकता है। इस लॉन्च के कई अच्छे वीडियो भी लिए गये है। इस छवि को ऑरेंज काउंटी, कैलिफ़ोर्निया(Orange County, California) द्वारा 2.5 सेकंड के एक्सपोज़र अवधि में कैप्चर किया गया है।
धन्यवाद आशीष श्रीवास्तव जी
स्रोत: APOD(24Dec/Astronomy Picture of the Day)

मंगलवार, 3 मई 2016

क्या होती है कीड़ा जड़ी? What is cordyceps sinensis?

क्या होती है कीड़ा जड़ी? What is cordyceps sinensis?
सामान्य तौर पर समझें तो ये एक तरह का जंगली मशरूम है जो एक ख़ास कीड़े की इल्लियों यानी कैटरपिलर्स को मारकर उसपर पनपता है। इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम है कॉर्डिसेप्स साइनेसिस और जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये उगता है उसका नाम है हैपिलस फैब्रिकस। स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते हैं क्योंकि ये आधा कीड़ा है और आधा जड़ी है और चीन-तिब्बत में इसे यारशागुंबा कहा जाता है। ‘यारशागुंबा’ जिसका उपयोग भारत में तो नहीं होता लेकिन चीन में इसका इस्तेमाल प्राकृतिक स्टीरॉयड की तरह किया जाता है।
सर्वप्रथम इसका उल्लेख तिब्बती साहित्य में मिलता है। इस उल्लेख के अनुसार यहाँ के चरावाहों ने देखा कि यहाँ के जंगलों में चरने वाले उनके पशु एक विशेष प्रकार की घास जो कीड़े के समान दिखाई देती है, को खाकर हष्ट-पुष्ट एवं बलवान हो जाते हैं। धीरे-धीरे यह घास एक चमत्कारी औषधि के रूप मे अनेक बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग होने लगी। तिब्बती भाषा में इसको यारशागुंबा’ कहा जाता है। जिसका अर्थ होता है ग्रीष्म ऋतु मे घास और शीत ऋतु ऋतु में जन्तु। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार यर्सीगम्बा हिमालयी क्षेत्र की विशेष प्रकार एवं यहाँ पाये जाने वाले एक कीड़े के जीवन चक्र के अद्भुत संयोग का परिणाम है।
शक्ति बढ़ाने में इसकी करामाती क्षमता के कारण चीन में ये जड़ी खिलाड़ियों ख़ासकर एथलीटों को दी जाती है। ये जड़ी 3500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है जहां ट्रीलाइन ख़त्म हो जाती है यानी जहां के बाद पेड़ उगने बंद हो जाते हैं। मई से जुलाई में जब बर्फ पिघलती है तो इसके पनपने का चक्र शुरू जाता है रासायनिक दृष्टि से इस औषधि में एस्पार्टिक एसिड, ग्लूटेमिक एसिड, ग्लाईसीन जैसे महत्वपूर्ण एमीनो एसिड तथा कैल्सियम, मैग्नीशियम, सोडियम जैसे अनेक प्रकार के तत्व, अनेक प्रकार के विटामिन तथा मनुष्य शरीर के लिए अन्य उपयोगी तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसको एकत्रित करने के लिए अप्रैल से लेकर जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। अगस्त के महिने से धीरे-धीरे प्राकृतिक रुप से इसका क्षय होने लगता है और शरद ऋतु के आने तक यह पूर्णतया: विलुप्त हो जाती है। वनस्पतिशास्त्री डॉक्टर एएन शुक्ला कहते हैं, “इस फंगस में प्रोटीनपेपटाइड्सअमीनो एसिडविटामिन बी-1, बी-और बी-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं। ये तत्काल रूप में ताक़त देते हैं और खिलाड़ियों का जो डोपिंग टेस्ट किया जाता है उसमें ये पकड़ा नहीं जाता।” कीड़ा-जड़ी से अब यौन उत्तेजना बढ़ाने वाले टॉनिक भी तैयार किए जा रहे हैं जिनकी भारी मांग है।

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

क्या हैं गुरुत्वाकर्षण तरंगें Gravitational Waves?

क्या हैं गुरुत्वाकर्षण तरंगें Gravitational Waves?
वैज्ञानिकों ने गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज कर ली है। इनकी अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन्हें सदी की सबसे बड़ी खोज माना जा रहा है। दशकों से वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि क्या गुरुत्वाकर्षण तरंगें वाकई दिखती हैं। इसकी खोज करने के लिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने लीज पाथफाइंडर नाम का अंतरिक्ष यान भी अंतरिक्ष में भेजा था।
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन से आज से तकरीबन 100 साल पहले ही इस बारे में भविष्यवाणी कर दी थी जोकि सही साबित हुई। इस खोज से न सिर्फ आइंस्टाइन का सिद्धांत प्रमाणीत हुआ है, बल्कि इससे पहली बार 2 टकराने वाले श्याम विवरों (ब्लैक होल) की भी पुष्टि हुई है।
आज से करीब सवा अरब साल पहले ब्रह्मांड में 2 श्याम विवरों (ब्लैक होल) में टक्कर हुई थी और यह टक्कर इतनी भयंकर थी कि अंतरिक्ष में उनके आसपास मौजूद जगह और समय, दोनों विकृत हो गए। आइंस्टाइन ने 100 साल पहले कहा था कि इस टक्कर के बाद अंतरिक्ष में हुआ बदलाव सिर्फ टकराव वाली जगह पर सीमित नहीं रहेगा। उन्होंने कहा था कि इस टकराव के बाद अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण तरंगें(ग्रैविटेशनल तरंगें) पैदा हुईं और ये तरंगें किसी तालाब में पैदा हुई तरंगों की तरह आगे बढ़ती हैं।
अब दुनिया भर के वैज्ञानिकों को आइंस्टाइन की सापेक्षता के सिद्धांत (थिअरी ऑफ रिलेटिविटी) के सबूत मिल गए हैं। इसे अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बहुत बड़ी सफलता माना जा रहा है। ग्रैविटेशनल तरंगों की खोज से खगोल विज्ञान और भौतिक विज्ञान में खोज के नए दरवाजे खुलेंगे।
गुरुत्वाकर्षण तरंगें पर द्रव्य (matter) का कोई असर नहीं पड़ता और ये ब्रह्मांड में बिना किसी रुकावट के विचरण करती हैं।
गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने आंकड़ो के विश्लेषन(डेटा अनैलिसिस) समेत काफी अहम भूमिकाएं निभाई हैं। इंस्टिट्यूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च. गांधीनगर, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रॉनामी ऐंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे और राजारमन सेंटर फॉर अडवांस्ड टेक्नॉलाजी, इंदौर सहित कई संस्थान इससे जुड़े थे।
गुरुत्वीय तरंगों की खोज का ऐलान आईयूसीएए पुणे और वाशिंगटन डीसी अमेरिका में वैज्ञानिकों ने किया। भारत उन देशों में से भी एक है, जहां गुरुत्वाकषर्ण प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है।----आशीष श्रीवास्तव
इससे सालों से चल रही गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज का अंत होने की उम्मीद है और ब्रह्मांड के जन्म से जुड़े 'बिग बैंग' के सिद्धांत को समझने के लिए नई खिड़की खुल सकेगी---बी  बी  सी